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( ३ )
दत्त महात्रत
सत्य को पाखन करते हुए चौर्य परित्याग तृतीयमहा व्रत का पाखममी सुख पूर्वक हो सकता है यह महाव्रत शूर वीर मात्मा ही पाचन कर सकते है विना भड़ा किसी वस्तु का म उठाना यही इस महावत का मुख्य कार्य है किसी स्थान पर कोई भी साधु के होने योग्य पदार्थ पड़ा हो उसे बिना आमा म प्राण करना इस महामठ का यही मुस्योपदेश है मन वचन काप से व्याप चोरी करे नहीं औरों से चोरी कराए नहीं घारी करमे माल की भतु मोदमा भी न करे तथा चारी ने माकों की मोद शाक में होता है यह सब के मस्पच है इस लिए साधु महात्मा इस पद्दा प्रत का विधि पूर्वक पालन करते हैं ।
ब्रह्मचर्य महाव्रत |
दच महा प्रत का पालन मह्मचारी ही पूर्णतया कर है इस लिये चतुर्थ वर्य महामत रूपम किया स्थिर हो सकता है स अपने मामा को ant
क्षमा
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सकवा
गया है ब्रह्मचारी का ही मन बारी ही ध्यान अवस्था में सकता है।