Book Title: Dharm Sangraha Part 03
Author(s): Pravin K Mota
Publisher: Gitarth Ganga

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Page 117
________________ धर्मसंग्रह मान-3 | द्वितीय अधिकार | Rels-36 - द्विकसंयोगाः षट्, एकैकस्मिंश्च द्विकयोगे देदे १ देस २ सदे ३ सस ४ एवं चत्वारश्चत्वारो भगा भवन्ति, सर्वे चतुर्विंशतिः । त्रिकयोगाश्चत्वारो भवन्ति, एकैकस्मिंश्च त्रिकयोगे देशसर्वापेक्षया देदेदे १ देदेस २ देसदे ३ देसस ४ सदेदे ५ सदेस ६ ससदे ७ ससस ८ एवमष्टावष्टौ भवन्ति, सर्वे द्वात्रिंशत् । चतुष्कयोग एकः, तत्र देशसर्वापेक्षया षोडशभङ्गा देदेदेदे १ देदेदेस २ देदेसदे ३ देदेसस ४ देसदेदे ५ देसदेस ६ देससदे ७ देससस ८ सदेदेदे ९ सदेदेस १० सदेसदे ११ सदेसस १२ ससदेदे १३ ससदेस १४ सससदे १५ सससस १६ एवं सर्वेषां मीलनेऽशीतिर्भङ्गाः स्युः । - स्थापनायन्त्रकाणि चेमानि-एतेषां मध्ये पूर्वाचार्यपरम्परया सामाचारीविशेषेणाहारपोषध एव देशसर्वभेदाद्विधापि सम्प्रति क्रियते, निरवद्याहारस्य सामायिकेन सहाविरोधदर्शनात् सर्वसामायिकव्रतवता साधुना इव उपधानतपोवाहिश्रावकेणाप्याहारग्रहणात्, शेषास्त्रयः पोषधाः सर्वत एवोच्चार्यन्ते, देशतस्तैः प्रायः सामायिकस्य विरोधात्, यतः सामायिक सावज्जं जोगं पच्चक्खामी'त्युच्चार्यते, शरीरसत्कारादित्रये तु प्रायः सावद्यो योगः स्यादेव, निरवद्यदेहसत्कारव्यापारावपि विभूषादिलोभनिमित्तत्वेन सामायिके निषिद्धावेव, आहारस्य त्वन्यथा शक्त्यभावे धर्मानुष्ठाननिर्वाहार्थं साधुवदुपासकस्याप्यनुमतत्वात्, उक्तं चावश्यकचूर्णा पौषधस्याशीतिभङ्गयन्त्रकाणि एकसंयोगा देशतः ४ एककभङ्गाः सर्वतः ४ आहारशरीरयोगे ४ आहारब्रह्मयोगे ४ आ०पो०३०१ आ०पो०स०५ आ०पो०दे०स०पोन्दे० १ । आ-पो०दे०बं०पो०दे०५ स०पो०दे० २ . स०पो०स०६ आ०पो०दे०स०पो०स०२ आ०पो०दे०बं०पो०स०६ बं०पो०दे० ३ बं०पो०स०७ आपो०दे०स०पो०दे० ३ आ०पो०स०बं०पो०दे०७ अ०पो०दे०४ . अ०पो०स०८ आ०पो०स०स०पो०स० ४ आ०पी०स०बं०पो०स०८ आहारव्यापारयोगे ४ शरीरब्रह्मयोगे ४ शरीराव्यापारयोगे ४ ब्रह्माव्यापारयोगे ४ . आ०पो०दे०अ०पो०३०९ स०पो०दे०७०पो०दे०१३ स०पो०दे०अ०पो०दे०१७ बं०पो०दे०अ०पो०दे०२१ आ०पोन्दे०अ०पी०स१० स०पोल्दे०बं०पी०स०१४ स०पो०स०अ०पो०स०१८ बं०पोन्दे०अ०पो०स० २२ आ०पो०स०अ०पो०दे०११ स०पी०स०बं०पो०दे०१५ स०पी०स०अ०पो०दे०१९ बं०पो०स०अ०पो०दे०२३ आ०पो०स०अ०पो०स०१२ स०पी०स०बं०पो०स०१६ स०पी०स०अ०पी०स०२० बं०पो०स०अ०पो०स०२४

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