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प्रवचन-३ कौन-सा जीव नरक में जाता है। स्वर्ग का भौतिक सुख देखा और नरक की घोर शारीरिक वेदनाएँ देखीं। देखकर उन्होंने हमें कहा : 'धर्मपुरुषार्थ' से ही स्वर्ग मिलेगा, पापाचरणों से नरक मिलेगा।' इसको भय और लालच नहीं कह सकते। वास्तविक मार्गदर्शन है यह। जीवों को दुःखों से बचाने के लिए सावधान करना, भय बताना नहीं है परंतु भयमुक्त-दु:खमुक्त करने का प्रयत्न है। उसी प्रकार, स्वर्ग के सुख बताना जो कि वास्तव में हैं, कोई अपराध नहीं है। दूसरों को, सुख पाने का मार्ग बताना अपराध नहीं है। स्वर्ग और नरक कल्पना नहीं, सत्य है :
प्रश्न : तो, आप कहते हैं स्वर्ग है, नरक है। क्या आप इस बात को बुद्धिगम्य हो, उस प्रकार से समझाने की कृपा करेंगे?
उत्तर : अवश्य, क्यों नहीं? जो तत्त्व इन्द्रियातीत होते हैं यानी इन्द्रियों से प्रत्यक्ष नहीं होते जो तत्त्व, उन तत्त्वों का निर्णय अनुमान प्रमाण से किया जाता है। जैसे प्रत्यक्ष प्रमाण है वस्तुनिर्णय में, वैसे अनुमान भी प्रमाण है वस्तुनिर्णय में। अनुमान यानी तर्क । स्वर्ग और नरक का अस्तित्व सिद्ध हो सकता है तर्क से, अनुमान से। अच्छा, आप मुझे बताइए कि एक व्यक्ति ने किसी मनुष्य की हत्या कर दी, वह हत्यारा 'रेड हेन्डेड' पकड़ा गया, तो उसे ज्यादासे ज्यादा क्या सजा होगी?
सभा में से : फांसी, देहांत दंड! महाराजश्री : ठीक है, उस हत्यारे को फांसी की सजा होगी, परन्तु दूसरे एक व्यक्ति ने पाँच मनुष्यों की हत्या कर दी, वह भी पकड़ा गया, अपराधी सिद्ध हो गया, तो उसको क्या सजा होगी?
सभा में से : उसको भी फांसी ही मिलेगी!
महाराजश्री : क्यों? एक मनुष्य की हत्या करनेवाले को फांसी और पाँच मनुष्यों की हत्या करनेवाले को भी फांसी? पाँच मनुष्य की हत्या करनेवाले को ज्यादा सजा होनी चाहिए न? इस दुनिया में मृत्युदंड से बढ़कर कोई सजा ही नहीं! सजा तो होनी ही चाहिए। अपराध के अनुरूप सजा होनी चाहिए! यदि इस प्रकार सजा न हो तो वह अन्याय कहलाएगा। हिटलर का साथी आइकमेन था, उसने लाखों की संख्या में मनुष्यों की हत्या कर दी थी। क्या एक बार फांसी देने से उस आइकमेन को पूरी सजा मिल गई? ऐसी अधूरी सजा जहाँ मिलती है, वह है नरक! जो जीव नर्क में उत्पन्न होता है वहाँ
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