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प्रवचन-३
२९
करेगा। आप लोग बुद्धिमान हो न? जो भी कार्य करते हो, फल का अनुसंधान करके करते हो न? परिणाम का विचार करते हो न?
सभा में से : हमारे भीतर बुद्धि ही नहीं है! महाराजश्री : तो क्या मूर्ख हो? आपको कोई मूर्ख कहे तो मान लेते हो न? बुरा नहीं मानते न? जानता हूँ आप लोगों को! मेरे सामने मूर्खता का स्वीकार कर लेते हो, क्योंकि जवाब देना भारी पड़ रहा है। पापाचरण करना है, पापों के फल का विचार करते नहीं। 'मैं यह पाप करता हूँ इसका क्या फल मिलेगा?' सोचते हो?
सभा में से : फल का विचार तो करते हैं, परन्तु तात्कालिक फल का!
महाराजश्री : अच्छा कोई आपको कहे यह मिठाई खाइए, स्वादिष्ट है। परन्तु है विषमिश्रित, जहर का असर अभी तत्काल नहीं होगा, 'स्लो पोइज़न' है... आप खा लोगे न? तात्कालिक फल स्वाद का मिलेगा। क्यों नहीं खाओगे? दीर्घकालीन दुष्परिणाम का विचार तुरंत आ जाता है। पाप करते समय दीर्घकालीन दुष्परिणाम का विचार नहीं करते! बुद्धि तो है परन्तु निर्मल बुद्धि नहीं है, विशुद्ध बुद्धि नहीं है। मलिन और अशुद्ध बुद्धि पापों के फल का विचार या धर्म के फल का विचार नहीं कर सकती। ऐसी बुद्धि तो निरन्तर सुख और दुःख के द्वन्द्वों में ही उलझी हुई रहती है। बुद्धि को जाँच लो : मलिन है या स्वच्छ?
जिस मनुष्य की बुद्धि निर्मल है, विशुद्ध है वह मनुष्य तो अवश्य फल का विचार करेगा ही। इहलौकिक फल का और पारलौकिक फल का | अल्पकालीन फल का और दीर्घकालीन फल का। जिस प्रवृत्ति का फल वर्तमान जीवन में अच्छा मिलता हो, परन्तु पारलौकिक जीवन में बुरा मिलता हो, तो बुद्धिमान मनुष्य वैसी प्रवृत्ति नहीं करेगा। जिस कार्य का तात्कालिक फल अच्छा मिलता हो, परन्तु कुछ समय के बाद उसका दुष्परिणाम आनेवाला हो, तो मनुष्य वैसा कार्य नहीं करेगा। निर्मल बुद्धिवाला मनुष्य तो सर्वप्रथम वैसा कार्य ही करना पसन्द करेगा कि जिसका फल उभयलोक में-वर्तमान जीवन में और भविष्यत्कालीन जीवन में अच्छा मिलनेवाला हो। इहलोक और परलोक दोनों जगह अच्छा परिणाम, उत्तम फल प्राप्त होनेवाला हो। समझ गए न? अब देख लेना अपनी-अपनी बुद्धि को! समल है कि निर्मल, अशुद्ध है कि विशुद्ध!
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