________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन- १२
किताब का ज्ञान दिमाग तक, दिल तक कहाँ जाता है ?
१६६
एक पंडित थे। अपनी जैन पाठशाला में पढ़ाते थे। 'कर्मग्रन्थ' और 'कर्मप्रकृति जैसे ग्रन्थों का अध्ययन करवाते थे । एक दिन वे मेरे पास आये । बहुत उद्विग्न थे। मैंने पूछा : 'क्या बात है ? आज इतने परेशान क्यों ?' उन्होंने कहा : 'पाठशाला के ट्रस्टियों की ओर से परेशान हूँ । तीन साल से पढ़ाता हूँ, परन्तु तनख्वाह बढ़ाते नहीं और काम बढ़ाते जाते हैं।' मैंने पूछा : 'ऐसा कौन से कर्म के उदय से होता है ? किसी न किसी कर्म का उदय काम करता होगा न?'
उनके पास ज्ञान था कर्मसिद्धान्त का, परन्तु वह ज्ञान आत्मसात् नहीं हुआ था, मात्र आजीविका का साधन बन कर रह गया था । ज्ञानी तो अपनी समस्याओं का समाधान अपने ज्ञान से करते रहते हैं और मन को समरस बनाए रखते हैं। कर्मबंध का और कर्मोदय का विज्ञान मन का समाधान कर सकता है। महामंत्री ने अपने मन का समाधान कर लिया था ।
हाथी में चेतना का संचार :
उधर चतुरा महामंत्री से पूजन का वस्त्र लेकर हाथी के पास पहुँच गई। वस्त्र हाथी को ओढ़ा दिया। राजा और प्रजा की आँखें हाथी पर स्थिर हो गईं। 'अब क्या होगा ?' सबके मन में इन्तजारी बढ़ गई। थोड़ा समय बीता और हाथी के शरीर में कंपन पैदा हुआ। हाथी ने अपने पैर हिलाये ... । राजा खड़ा हो गया...। उसके मुँह पर खुशी की लहर दौड़ आई । हाथी की सूँढ़ हिलने लगी। धीरे-धीरे उसने अपनी आँखें खोलीं।
For Private And Personal Use Only
कलंक दूर हो गया :
लोगों ने महामंत्री पेथड़शाह का जय-जयकार किया । दासी चतुरा तो हर्ष से नाचने लगी। धीरे-धीरे हाथी खड़ा होने लगा। राजा के हृदय में से महामंत्री के प्रति जो गुस्सा था, निकल गया। उसने महामंत्री को बुलावा भेजा। महामंत्री राजा के पास पहुँचे। राजा ने महामंत्री के ब्रह्मचर्य व्रत की प्रशंसा की और अपने साथ हाथी पर बैठने को कहा। महामंत्री हाथी पर नहीं बैठते थे, उन्होंने इनकार किया, तो राजा ने अपना पट्ट - अश्व मँगवाया। मंत्री को अश्व पर बिठाया, चँवर और छत्र धारण करवाये। उत्सव के साथ नगर में प्रवेश करवाया। राजसभा में राजा ने महामंत्री को एक लाख स्वर्णमुद्राएँ भेंट दीं। महामंत्री की बहुत प्रशंसा की । सारे नगर में आनन्द छा गया ।