Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 327
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-२४ ३१९ बतानेवाला विश्वसनीय है न? निष्पक्ष, मध्यस्थ और जिन है ना? यदि निर्णय हो जाय तो, बतानेवाले ने जिस प्रकार वह धर्मानुष्ठान करने का कहा हो, उसी प्रकार करना । विधि का आदर करना । समय का खयाल करना। भावों का लक्ष्य रखना | इतना सब करने पर भी आपके हृदय को टटोलना | आपका हृदय मैत्री, करुणा, प्रमोद और माध्यस्थ्य भावों से शुद्ध बना हुआ है या नहीं। यानी आपके विचारों में संशोधन हुआ है या नहीं। आपके विचार मैत्रीभावना से भावित बने हैं? करुणा से आपके विचार कोमल बने हैं? प्रमोद से आपके विचार उन्नत बने हैं? माध्यस्थ्य से आपके विचारों में समत्व आया है? अपनी किस्मत अपने हाथ : ___ अपने भविष्यनिर्माण में अपने विचार महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं | यह मत भूलना कि अपने भविष्य का निर्माण हम ही करते हैं, कोई दूसरा नहीं करता। कोई ईश्वर नहीं करता। हम इस जीवन में अपने विचार-बीज जैसे बोयेंगे अपनी आत्मभूमि में, उन विचार-बीजों में से जीवन-वृक्ष पैदा होंगे। यदि बीज बोया है नीम का तो वृक्ष आम का पैदा नहीं होगा, नीम का वृक्ष ही पैदा होगा। आम का वृक्ष चाहिए तो बीज आम का बोना पड़ेगा। यदि विचार-बीजों को बोने में सावधान नहीं रहे, जाग्रत नहीं रहे, तो भविष्य अंधकारमय, दुःखमय और वेदनामय बनेगा। श्रमण भगवान महावीर प्रभु ने इसीलिए तो कहा कि : चलो सावधानी से, बैठो सावधानी से, खाओ सावधानी से, पीओ सावधानी से, बोलो सावधानी से...! सावधानी यानी जाग्रति! कोई गलत विचार का बीज आत्मभूमि में गिर न जाये इसके लिए जाग्रत रहो। विचारों के बीज आत्मभूमि में गिरते देर नहीं लगती। विचारों से संसारी : विचारों से साधु : __कहिए, आपको कैसी फसल चाहिए? कैसे वृक्ष पसन्द करते हो? बबूल के? नीम के? यदि आपने शत्रुतापूर्ण विचार किए, क्रूरतापूर्ण विचार किए, ईर्ष्यायुक्त विचार किये, तिरस्कार और धिक्कारपूर्ण विचार किए तो समझ लो कि नरक सामने है। पशुयोनी सामने है। कोई भी हो, संसारी हो या साधु हो। विचारों से मनुष्य संसारी है, विचारों से मनुष्य साधु है। राजर्षि प्रसन्नचंद्र ने सातवें नरक में जाने के कर्म कैसे इकट्ठे कर लिये थे? वेष साधु का था परन्तु विचार संसार के थे! भरत चक्रवर्ती ने शीशमहल में केवलज्ञान कैसे पा लिया था? वेश संसारी का था, परन्तु विचार साधु के थे! विचारों ने उनको वीतराग बना दिया था, सर्वज्ञ बना दिया था! विचारशक्ति का अपार और अद्भुत प्रभाव हैं | जाग्रत बने रहो, तो ही विचार शुद्ध रह सकते हैं | जाग्रति चली गई, होश For Private And Personal Use Only

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