Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 328
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-२४ ____३२० चला गया, बेहोश हो गए तो काम तमाम है! बेहोशी बड़ी खतरनाक है। बेहोशी में न करने के विचार हो जाते है! जैसे भंग, शराब वगैरह के नशे होते हैं वैसे राग, द्वेष और मोह वगैरह के नशे होते हैं। नशे में होश नहीं रहता। एक सरदारजी दिल्ली के बसस्टेन्ड पर खड़े थे। खड़े क्या थे, एक बेंच पर बैठे-बैठे उबासियाँ खा रहे थे। नशे में थे। किया होगा कोई नशा! एक पुलिसमेन ने देखा। उसने सरदारजी के पास आकर कहा : 'क्या कर रहे हो इधर?' 'उबासी खा रहा हूँ।' 'सरदारजी, तुम यहाँ उबासी क्यों खा रहे हो? यहाँ उबासी खाने के पैसे लगते हैं।' 'कितने पैसे लगते हैं?' सरदारजी ने पूछा। 'एक उबासी का एक रूपया...' सरदारजी ने जेब से पच्चीस रूपये निकाल कर पुलिस को दे दिए । पुलिस चला गया। सरदारजी घर पहुँचे । नशे में थे। अपनी बीवी से बड़े गर्व के साथ कहते हैं : 'मैंने आज पुलिस को खूब उल्लू बनाया ।' 'कैसे? क्या हुआ जी?' बीवी ने उत्सुकता से पूछा। 'मैंने उबासियाँ खाई होंगी पचास-साठ और पुलिस को रूपये दिये मात्र पच्चीस! पुलिस को कैसा मूर्ख बनाया!!' बेहोशी में मनुष्य स्वयं मूर्खता करता है, मानता है दूसरे को मूर्ख! राग की बेहोशी, द्वेष की बेहोशी और अज्ञान की बेहोशी वैसी है। होश में रहो, बेहोशी में मत जाओ। नशा मत करो। जाग्रत रहो। विचारों में हो सके उतनी जाग्रति बनाए रखो। विचारों में से अशुद्धि दूर करने का प्रयत्न करते रहो। वह प्रयत्न है मैत्री वगैरह भावनाओं से भावित होने का | प्रतिदिन प्रातःकाल या सायंकाल इन भावनाओं का अभ्यास करो। यदि यह अभ्यास निरन्तर करते रहे तो आपकी विचारधारा गंगा की पवित्र धारा बन जायेगी। आप जाग्रत बन जाओगे। होश में आ जाओगे। अब, आज हम मैत्री वगैरह भावनाओं का उपसंहार करेंगे। मैत्रीभावना : आपको मैत्री या शत्रुता, दो में से एक बात पसन्द करने की है। यदि आपको मैत्री पसन्द है तो मैत्री को अपना लो, यदि आपको शत्रुता से प्यार है तो शत्रुता अपना लो। होते हैं संसार में ऐसे मनुष्य जिनको शत्रुता करने में, शत्रुता बनाए रखने में और शत्रुता बढ़ाने में मजा आता है। परन्तु मजा तो For Private And Personal Use Only

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