Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 333
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- २४ ३२५ कभी भी प्रेम नहीं कर सकते। उन में प्रमोद नहीं हो सकता । गोशालक पूर्णपुरुष भगवान महावीर में गुणदर्शन नहीं कर सका था । गुणमूर्ति से प्रेम नहीं कर सका था । भगवान महावीर के प्रति भी उसने द्वेष किया था । प्रेम गुणों से करना सीखें : मोक्ष के प्रति भी द्वेष करनेवाले जीव होते हैं संसार में! मोक्ष यानी सर्वगुणसंपन्न सिद्ध भगवानों की सृष्टि । गुणसृष्टि से जिसको कोई परिचय नहीं है, मात्र दोषों से ही प्रेम है, ऐसे जीव मोक्षद्वेषी हो सकते हैं । सिद्धद्वेषी, अरिहंतद्वेषी, आचार्यद्वेषी, उपाध्यायद्वेषी और साधुद्वेषी जीव भी इस संसार में होते हैं। ये जीव गुणद्वेषी होते हैं। ऐसे जीवों को क्षमा से प्रेम नहीं होता, क्रोध से प्रेम होता है। इन्हें नम्रता से प्रेम नहीं होता, अभिमान से प्रेम होता है। इन्हें सरलता से प्रेम नहीं होता, माया और कपट ही उनको प्यारे होते हैं । इन्हें निर्लोभता से प्रेम नहीं होता, लोभ और परिग्रह से प्रीति होती है। इन्हें सत्य से प्रेम नहीं होता, झूठ ही उनको प्यारा होता है । इन्हें प्रामाणिकता प्रिय नहीं होती, बेईमानी से मुहब्बत होती है । टटोलना अन्तरात्मा को । गुणों से प्रेम है या दोषों से, देखना जरा भीतर में। आत्मनिरीक्षण करना - 'सेल्फ आब्जरवेशन' करना । 'प्रमोद' कोई एक-दो या पाँच-दस व्यक्ति तक सीमित नहीं है, प्रमोद का क्षेत्र बड़ा विशाल है, लंबाचौड़ा हैं। 'लव आफ वरच्युज' गुणों से प्रेम सुलभ तत्त्व नहीं है, दुर्लभ तत्त्व है। पाँच-दश क्षण प्रमोद - भावना का चिन्तन कर लेने मात्र से हम गुणप्रेमी नहीं बन जाते हैं। प्रमोद का विषय 'सब्जेक्ट' कितना विशाल है, कितना व्यापक है, जानते हो ? सुन लो ध्यान से : १. जो वीतराग-सर्वज्ञ हैं, जो सदेह परमात्मा हैं, जीवों के प्रति अपार उपकार करते हैं। वे हमारे सर्वश्रेष्ठ प्रमोद के विषय हैं। २. जो देहातीत हो गए हैं, जो सिद्ध-बुद्ध - मुक्त हैं, अनन्त गुणों के सागर हैं - वे हमारे सर्वश्रेष्ठ प्रमोद के विषय हैं । ३. जो पहाड़ों की गुफाओं में, जंगलों में निर्मम और अविकारी महात्मा पुरुष धर्मध्यान में निमग्न रहते हैं, समतारस में लीन रहते हैं, घोर तपश्चर्या अप्रमत्तभाव से करते हैं - वे हमारे प्रमोद के श्रेष्ठ पात्र हैं। ४. जो साधुपुरुष ज्ञानी हैं, निरन्तर लोगों को धर्मोपदेश देते हैं, जिनके मन शान्त हैं, जिनकी इन्द्रियाँ उपशान्त हैं, जो जिनशासन की प्रभावना करते हैं वे हमारे प्रमोद के पात्र हैं। For Private And Personal Use Only

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