Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 325
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-२३ ३१७ हृदय को चार भावनाओं से सराबोर कर दो : धर्म-आराधना को प्राणवान् बनाने हेतु, आराधक का हृदय इन चार भावनाओं से-मैत्री, करुणा, प्रमोद और माध्यस्थ्य से भरा-भरा होना चाहिए | भावनाओं से हरा-भरा हृदय धर्म का ग्राहक बनता है। धर्म के स्वरूपदर्शन में इन भावनाओं को समाविष्ट कर के श्री हरिभद्रसूरिजी ने बहुत ही अच्छा प्रतिपादन किया है। आप लोग यदि इन भावनाओं को समझ लो और हृदय को भावित करने लगो तो आप अपूर्व शान्ति पाओगे। आपकी हर धर्म-क्रिया उल्लासमय बन जाएगी। आपकी धर्म क्रिया देखकर दूसरों को आपके प्रति और आपकी धर्म क्रिया के प्रति आदर एवं बहुमान पैदा होगा। आज हम उपेक्षा भावना का विवेचन समाप्त करते हैं। कल चारों भावनाओं का उपसंहार करने का विचार है। मैत्री, करुणा, प्रमोद और मध्यस्थ्य-भावना के विषय में और धर्म के स्वरूप के विषय में कल उपसंहार करूँगा। क्योंकि बाद में मार्गानुसारी जीवन के ३५ गुणों का वर्णन ग्रन्थकार महर्षि ने किया है। उन गुणों के विषय में हमको विवेचन करना है। ग्रन्थकार असाधारण विद्वान एवं महान आत्मज्ञानी थे। सूत्रात्मक भाषा में उन्होंने इस 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ की रचना की है। सूत्र बड़ा महत्त्व रखते हैं। छोटे से वाक्य में अनेक भाव भरे हुए होते हैं। हम उन सूत्रों पर चिन्तन करेंगे। जैन-अजैन सभी के लिए ये ३५ गुण जीवनोपयोगी हैं। आज, बस इतना ही। For Private And Personal Use Only

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