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प्रवचन-२३
३०९ विचार नहीं करोगे और सुखों के प्रति निर्वेद नहीं आया तो दुःखी दुःखी हो जाओगे। क्योंकि सुखों के प्रति निर्वेद का अभाव यानी वैराग्य का अभाव ही तो सर्व दुःखों का मूलभूत कारण है। ___ सुखों के प्रति राग है तो सुख पाने की प्रबल इच्छा जाग्रत होगी ही। जब सुख मिलेंगे नहीं तब क्लेश और संताप होगा ही। होता है न आप लोगों को? सुख प्रिय हैं परन्तु मिलते नहीं, मिलते हैं तो टिकते नहीं...कभी टिकते हैं तो भोगने की क्षमता नहीं रहती, तब कैसी वेदना होती है? क्या जीवन इस प्रकार वेदनामय ही व्यतीत करना है? रो-रोकर ही आयुष्य पूर्ण करना है? क्यों प्रकाश होने पर भी अन्धकार में भटक रहे हो? अमृत पास में होने पर भी क्यों जहर पी रहे हो? __ संसार के सर्व सुखों में असारता और क्षणिकता का ज्ञान हो जाना चाहिए | सारे के सारे वैषयिक सुख असार हैं और क्षणिक हैं-यह बात आत्मा के हर प्रदेश में पहुँच जानी चाहिए। फिर कैसा भी सुख आपके पास आये, आप कैसा भी सुख भोगो, आपका मन आसक्त नहीं बनेगा। आये हुए सुख चले जाने पर आपको कोई दुःख नहीं होगा।' सुख के चार प्रकार : मुख्य रूप से सुख चार विभागों में विभाजित हो जाता है : १. स्वजनों का सुख २. परिजनों का सुख ३. धन-वैभव का सुख ४. शरीर का सुख
जब निर्वेदसारा उपेक्षा-भावना को अच्छी तरह समझना है, तब इन चार प्रकार के सुखों को भी अच्छी तरह समझना ही चाहिए। सुखों की उपेक्षा तभी संभव है। आपके पास मान लो कि ये चारों प्रकार के सुख हैं, फिर भी आप इन सुखों से निर्बंध रहते हुए, बहुत कम सुखों का उपभोग करते हुए, प्रसन्नतापूर्ण जीवन जी सकते हो। यह तभी संभव है कि आप सुखों का ‘एक्सरे' लेकर सुखों के भीतर जो दुःख पड़े हैं, उनको देख लो। सुखों की भीतरी खराबी देख लो। भीतरी खराबी है असारता और क्षणिकता।
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