Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 318
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-२३ ३१० पुण्यकर्म का सुख : आत्मा का सुख : सुख दो प्रकार के होते हैं : १. असार और क्षणिक एवं २. सार और शाश्वत्! पुण्यकर्म के उदय से मिलनेवाले सारे के सारे पौद्गलिक सुख असार और क्षणिक हैं | आत्मा के स्वाधीन गुणरूप जो सुख हैं वे सारभूत एवं शाश्वत् हैं। सुख में सारभूत तत्त्व है आनंद! अमाप आनंद! आत्मीय स्वाधीन सुख में निरंतर आनंद की अनुभूति होती रहती है। वैषयिक सुखों में आनंद का अनुभव होता हुआ लगता है, परंतु वह आनंद का विकृत रूप होता है। आनंद का आभास मात्र होता है। आभास शाश्वत नहीं हो सकता, क्षणिक होता है | वैषयिक सुख इसलिए क्षणिक हैं। प्रिय शब्द सुनो तब तक मज़ा, फिर क्या? क्या सदैव प्रिय शब्द सुनने मिलेंगे? नहीं, शब्दों में प्रियत्व की धारा निरन्तर नहीं बहती है, कटुता भी बहने लगती है न? इसलिए श्रवणेंद्रिय का शब्द सुख क्षणिक है! वैसे कोई अच्छा रूप देखा तब तक खुशी! क्या आँखों को सदैव प्रिय रूप ही देखने को मिलेगा? क्या अप्रिय रूप नहीं देखना पड़ता? प्रिय रूपदर्शन सतत नहीं मिलता है आँखों को, इसलिए वह प्रियरूप का सुख क्षणिक है। जिह्वा को मधुर रस मिला, सुख मिला, परन्तु मधुर रस और जिह्वा का संयोग कब तक रहता है? जब वह संयोग टूट जाता है तब? अथवा कटु रस का अनुभव होता है तब क्या होता है? जिवेंद्रिय के रस का सुख इसलिए क्षणिक होता है। सुख की एक धारा नहीं रहती है। धारा टूट जाती है। वैसे ही प्रिय स्पर्श का सुख क्षणिक है। जब तक प्रिय व्यक्ति का स्पर्श होता रहता है तब तक सुखानुभव, परन्तु किसी से निरन्तर स्पर्श तो रह नहीं सकता है। वैसे कल जिसका स्पर्श सुखद लगता था आज उसका स्पर्श दुःखद लगता है! सुखानुभव की निरंतरता नहीं रहती है। निर्वेदसारा उपेक्षा को जीवन में स्थान दे दो। वैषयिक सुखों में लीन नहीं बनोगे, आवश्यक सुखभोग करने पर भी उसमें खो नहीं जाओगे। शालिभद्र जैसे श्रेष्ठिपुत्र ने अपार धन-वैभव का और रूपवती बत्तीस पत्नियों का सुख सरलता से त्याग दिया था न? उत्कृष्ट वैषयिक सुख उनको मिले थे, फिर भी उपेक्षा कर दी उन सुखों की । सुखों में असारता का और क्षणिकता का ज्ञान हो जाने पर, चक्रवर्ती के सुखों का त्याग करना भी आसान है। वैसे सुखों में सार महसूस हुआ, स्थायित्व लगा तो भिखारी का भिक्षापात्र छोड़ना भी असंभव हो जाता है। For Private And Personal Use Only

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