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प्रवचन-१७
२३२ __सभा में से : आजकल तो ऐसा ही देखने में आता है कि धनवान और युवान लोग ही ज्यादा पाप करते हैं। __ महाराजश्री : उनके प्रति आप लोगों के हृदय में क्या होता है? कैसे विचार आते हैं? द्वेष के या करुणा के? पापानुबंधी पुण्य के उदयवाले लोगों में ऐसा ही देखने को मिलेगा! भौतिक दृष्टि से सुखी लोग, धनवान, रूपवान, सत्तावान् लोग ज्यादा पाप करेंगे। पाप करने के साधन उनके पास ज्यादा हैं न? आजकल लोगों को पापानुबंधी पुण्य का उदय ज्यादा दिखता है। आप लोगों के पास जब तक भौतिक सुख के साधन नहीं हैं तब तक अच्छे हो! यदि आपको भी पापानुबंधी पुण्य का उदय आया हो आप भी यहाँ हमारे पास आना छोड़ दोगे। मंदिर में जाना छोड़ दोगे। पाप करने में खुशी होती है?
सभा में से : तो क्या मंदिर-उपाश्रय में आनेवाले लोग पापानुबंधी पुण्य के उदयवाले नहीं होते हैं? वे सब पुण्यानुबंधी पुण्य के उदयवाले ही होते हैं?
महाराजश्री : ऐसा कोई नियम नहीं है। यदि पाप को पाप मानता है, 'पापों का त्याग करना चाहिए,' वैसा हृदय से मानता है, फिर भी पापों का त्याग नहीं कर सकता है, उनको हम पापानुबंधी पुण्य के उदयवाले नहीं कहेंगे! पापानुबंधी पुण्य का उदयवाला तो पापों को ही कर्तव्यरूप मानता है। हाँ, मंदिर, उपाश्रय में ऐसी मान्यतावाले आते हों तो वे भी पापानुबंधी पुण्य के उदयवाले कहलायेंगे। बहुरूपी होता है न? घर में अलग रूप, मंदिर में दूसरा | दुकान में अलग रूप, उपाश्रय में दूसरा। कितने रूप करते हो एक दिन में? पाप करने पड़ते हैं और करते हो, तब मन में दुःख होता है? पाप कर लेने के बाद भी दुःख होता है? पापानुबंधी पुण्य के उदयवाले को दुःख नहीं होता है। उसको तो पाप करते समय मजा आता है और कर लेने के बाद भी मजा आता है। ___ ऐसे जीवों के प्रति अपने हृदय में करुणा होनी चाहिए। 'मोहमूढ़ बनकर यह बेचारा पाप करता है, दुर्गति में चला जाएगा, घोर दुःख पाएगा... 'ऐसा विचार करना चाहिए। 'मेरा चले तो मैं उसको पापों से रोक दूं, पापों से बचा लूँ, चाहे मुझे कष्ट भी उठाना पड़े तो उठाऊँगा, परन्तु उसको बचा लूँ।' ऐसा विचार करना चाहिए।
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