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प्रवचन- २१
२८९
और मिथ्यादर्शनों में रहे हुए मार्गानुसारी जीव... इन सबमें गुणदर्शन करते रहो और प्रमोदभाव बढ़ाते रहो। वैसे, जो भौतिक दृष्टि से सुखी हैं, अर्थात् जिनके पास पुण्योदय से बंगला, मोटर, नौकर-चाकर एवं संपत्ति है उनके प्रति ईर्ष्या मत करो। यदि वह अपने वैभव - संपत्ति का दुरूपयोग करता है तो भी उसकी कटु-आलोचना मत करो। उसके प्रति करुणा रखो। जो श्रीमंत अपनी श्रीमंताई का सदुपयोग करता है, उसके प्रति प्रमोद-भाव रखो। प्रमोद-भावना से आपका मन प्रसन्न रहेगा। आपकी आत्मा आनन्दित रहेगी। जीवन में और क्या चाहिए आपको?
आज हम प्रमोद-भावना का विवेचन पूर्ण करते हैं। चार भावनाओं में से तीन भावनाओं का विवेचन पूर्ण हुआ। मैत्री, करुणा और प्रमोद - भावना का विवेचन पूर्ण किया, अब चौथी माध्यस्थ्य भावना का विवेचन तीन दिन तक करेंगे । आज, बस इतना ही ।
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