Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 308
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-२२ ३०० पावन किया, यह मेरा सद्भाग्य है।' राजा ने कहा : 'हे विद्वत्त्श्रेष्ठ! आपकी तपश्चर्या और विद्याधन के सामने मैं रंक हूँ...।' राजा राजमहल चले गए। इधर भारवि माता भगवती के चरणों में वंदन करने जाता है, माता कहती है : 'बेटा, प्रथम तेरे पिताजी को नमस्कार कर ।' भारवि ने पिताजी के चरणों में साष्टांग नमस्कार किया। पिता ने उसके सिर पर हाथ रखा और कहा : 'शतं जीव!' __ त्रिलोचन के पुत्र के प्रति ऐसे रुक्ष व्यवहार से माता भगवती को दुःख हुआ | भगवती ने त्रिलोचन से कहा : 'बस, मात्र एक ही शब्द? विजयी पुत्र को छाती से भी नहीं लगाया? क्या आपके हृदय में पुत्र के प्रति इतना भी स्नेह नहीं?' भगवती की आँखों में आँसू आ गए। __त्रिलोचन ने भगवती की ओर देखा, भारवि की ओर भी देखा, वे बोले : 'देवी! पुत्र को आवश्यकता से ज्यादा मान मिल गया है। जब तक वह मानसन्मान को पचाना नहीं सीखे, मान-सन्मान की पात्रता प्राप्त न करे, तब तक उसको गले से लगाने का भाव कैसे जाग्रत हो? महाराज स्वयं इसको हाथी पर बिठाकर घर छोड़ने आए | परन्तु यह अभिमानी पुत्र महाराजा को छोड़ने थोड़ी दूर भी नहीं गया। राजा कैसे गुणानुरागी... कि इसको हाथी पर बिठाया और इसने महाराजा को अपने पर चामर ढोने दिया।' ____ भारवि ने अपनी सफाई पेश करते हुए कहा : 'पिताजी, महाराजा ने स्वयं मुझे हाथी पर बिठाया था, अपनी इच्छा से उन्होंने चामर दुलाया था।' __ त्रिलोचन ने कहा : 'महाराजा ने तो अपना बड़प्पन बताया, तेरा विनय कहाँ रहा? तेरी नम्रता कहाँ चली गई?' भारवि गुस्से से भर गया। तैश में आकर वह बोल : "पिताजी, यह सम्मान मेरे पांडित्य का था, मेरा नहीं।' त्रिलोचन ने भी दृढ़ता से कहा : 'अभिमान के साथ दंभ करने का प्रयास कर रहा है?' 'पिताजी! मैं इस प्रकार अपमान सहन करने का आदी नहीं हूँ।' 'बेटा, जिसमें पात्रता न हो, उनको मान देने की आदत मेरी भी नहीं है।' भारवि अपने कमरे में चला गया। त्रिलोचन अपने पूजाखंड में चले गए। भगवती त्रिलोचन के पीछे-पीछे पूजाखंड में पहुँची। आज उसके मन में कोई बड़े अनर्थ की आशंका उत्पन्न हो गई थी। भारवि के अभिमानी स्वभाव से माता सुपरिचित थी। पति की सिद्धान्तनिष्ठा से भी वह सुपरिचित थी। पुत्र के For Private And Personal Use Only

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