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प्रवचन-२२
३०३ वह उसको पसन्द आता है। यदि त्रिलोचन भारवि के अभिमान को पुष्ट करते, यानी उसकी प्रशंसा करते और छाती से लगाते तो भारवि खुश हो जाता। वह अपने आपको पिता से भी महान मानने लगा था। 'जैसा भव्य राजसम्मान मैंने पाया वैसा मेरे बाप ने कहाँ पाया है?'
अभिमानी जमाली मुनि ने भगवान महावीर की भी अवगणना कर दी थी, तो बेचारा भारवि कौन था? उसने पिता के प्रति घोर रोष किया। परन्तु यह बात महत्त्व की नहीं है, यह तो संसार की स्वाभाविक बात है। विशेषता है पिता त्रिलोचन में। त्रिलोचन ने अभिमानी पुत्र के प्रति भी तिरस्कार नहीं किया । रोष नहीं किया । जब त्रिलोचन अपने पूजाखंड में पहुँचे, पत्नी भगवती भी वहाँ पहुँची। त्रिलोचन के मुख पर कोई रोष नहीं था, गंभीरता थी और कुछ उदासीनता। त्रिलोचन परमात्मा के दर्शन करके बाहर चले गए। जब शाम को घर लौटे, तब घर में अंधेरा देखा। उन्होंने भगवती को शोकमग्न देखा। त्रिलोचन ने पूछा : 'देवी, आज घर में दिया क्यों नहीं जलाया गया है?' भगवती रो पड़ी। रोते-रोते उसने त्रिलोचन से कहा : 'आज आपने भारवि को जो कुछ कहा, ठीक नहीं किया।' त्रिलोचन ने भगवती का उपालंभ सुन लिया। शान्ति के साथ उन्होंने भगवती से कहा : ___ 'देवी, क्या मेरे हृदय में पुत्र के प्रति स्नेह नहीं है? तो फिर, मैंने सात दिन तक, जब तक राजसभा में भारवि वाद-विवाद करता रहा, मैंने उपवास क्यों किये? उसकी विजय हो, इसलिए अनुष्ठान क्यों करता रहा? क्या मैं नहीं जानता कि लड़का भविष्य में नाम कमाएगा? वह मेरी इकहत्तर पीढ़ी का नाम करे वैसा सामर्थ्य है उसमें । परन्तु एक दुर्भाग्य है... उसमें विनय और नम्रता नहीं है। सर्व गुणों की जड़ है विनय और नम्रता। यदि पिता अपने अभिमानी पुत्र की प्रशंसा करेगा तो वह पिता नहीं कहलाएगा, वह पुत्र का अहित करनेवाला शत्रु कहलाएगा | मैं भारवि में विनय और नम्रता देखना चाहता हूँ| तभी उसका विकास होगा, उन्नति होगी। यदि उसका यह अभिमान नहीं गया तो यह कभी किसी का प्राण ले लेगा।' जीवन-परिवर्तन भारवि का :
जब माता-पिता का यह वार्तालाप चल रहा था, भारवि घर की छत में एक पाप योजना बना रहा था। मिट्टी का एक भारी कुंडा उसने उठाया था और पिता के सर पर पटक देने का सोच रहा था। कुंडा उठाकर जब वह नीचे आ रहा था, उसने माता-पिता का वार्तालाप ध्यान से सुना। पिता की गद्-गद्
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