Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 312
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-२३ ३०४ आवाज में उसने अपनी प्रशंसा सुनी, पिता के हृदय का वात्सल्य उसको स्पर्श कर गया और उसकी आँखें आँसुओं से भर आई। उसने कुंडा वहीं जमीन पर पटक दिया। 'धड़ाम' जोरों की आवाज आई। त्रिलोचन और भगवती सीढ़ी की ओर दौड़े। इतने में तो भारवि ने आकर पिताजी के चरणों में नमस्कार किया । क्षमायाचना की। पितृहत्या के संकल्प का प्रायश्चित्त माँगा और भारवि के जीवन-परिवर्तन का सुप्रभात प्रगट हुआ। ___ माध्यस्थ्य-भावना यानी उपेक्षा-भावना ने त्रिलोचन की मनःस्थिति को बिगड़ने नहीं दिया । त्रिलोचन स्वस्थ रहे, तभी भारवि को जीवन-परिवर्तन का सुअवसर प्राप्त हुआ। ___ जब-जब किसी स्वजन-परिजन के अयोग्य आचरण देखो, उपदेश देने पर भी सुधरते नहीं देखो, आप बेचैन मत बनो । अशान्त मत हो उठो । उसके प्रति मध्यस्थ-भावना रखो। अपने शुद्ध आत्मस्वरूप का चिन्तन करो । शुद्ध आत्मस्वरूप का चिन्तन करने का अभ्यास करना पड़ेगा। मजा आता है उस चिन्तन में। परचिन्ता में से उत्पन्न सभी अकुलाहट दूर हो जाएगी। प्रसन्नता बनी रहेगी। मध्यस्थ्य, भावना के दूसरे प्रकार आगे बताऊँगा। आज, बस इतना ही। For Private And Personal Use Only

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