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प्रवचन-२२ अभिमान को पुष्ट करनेवाले वे पिता नहीं थे। पुत्र के प्रति उनके हृदय में वात्सल्य था, परन्तु पुत्र के अभिमानपूर्ण कार्यकलाप से वे उतने ही दुःखी थे। त्रिलोचन ने भारवि को उपदेश देकर सुधारने की आशा नहीं रखी थी। आज त्रिलोचन ने प्रसंगवश इतना कह दिया था। यह उपदेश नहीं था, परन्तु मात्र थोड़ा-सा पथप्रदर्शन था। वह भी भारवि को रुचा नहीं था। अभिमान : आज की शिक्षा की 'गिफ्ट आइटम' :
आज तो घर-घर में ऐसे अभिमानी भारवि पैदा हो गए हैं! आज की स्कूलकॉलेज की शिक्षा ने हमारी युवापीढ़ी को अभिमान की भव्य भेंट दी है। शायद ही किसी को यह भेंट नहीं मिली हो । अंग्रेजों की चलाई हुई इस शिक्षाप्रणाली में विनय को स्थान नहीं है। नम्रता को देशनिकाला दे दिया गया है। सरलता का नामोनिशान मिटा दिया गया है। शील-सदाचार की भावना को ही नष्ट कर दी गई है। ऐसी शिक्षापद्धति कितने वर्षों से चल रही है? आजादी मिलने के बाद भी वैसी ही शिक्षा दी जा रही है। युवापीढ़ी का नैतिक अधःपतन होने में क्या शेष रहा है? पारिवारिक जीवन में कितने अधिक अनिष्ट प्रविष्ट हो गये हैं? फिर भी वही शिक्षा दी जा रही है और ली जा रही है। अभिमानी उपदेश के लिए भी लायक नहीं :
वेशभूषा भी वैसी बन गई है कि मनुष्य में अभिमान उभर आए। अनपढ़ और मूर्ख लोग भी वैसी वेशभूषा कर रहे हैं और अभिमान की अंगड़ाइयाँ ले रहे हैं। अभिमानी मनुष्य परमात्मा का भी उपहास करता है। त्यागी, विरागी
और ज्ञानी साधुपुरुषों की भी अवज्ञा करता है। धर्मनिष्ठ स्त्री-पुरुषों की अवहेलना करता है। वास्तव में तो अभिमानी अपनी ही मूर्खता का प्रदर्शन करता होता है। परन्तु कौन बताये उनकी मूर्खता? गधे को उपदेश देना और अभिमानी को उपदेश देना-समान है। लात खानी हो तो गधे को उपदेश देने जाओ। गाली या कटु वचन सुनने हों ऋतो अभिमानी को उपदेश देने जाओ। जिसके घर में अभिमानी लड़के-लड़कियाँ हों, जिसकी पत्नी अभिमानी हों, जिसका पति अभिमानी हो, जिसका बॉस अभिमानी हो...उनको पूछना कि वे अभिमानी के साथ शान्तिमय और सुखमय जीवन व्यतीत करते हैं या अशान्तिपूर्ण और दुःखमय जीवन व्यतीत करते हैं। जिनके शिष्य अभिमानी हों, वैसे धर्मगुरु से पूछना कि उनकी मनः स्थिति कैसी रहती है।
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