Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 307
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-२२ २९९ मैंने घोर अशान्ति और संताप में सुलगते हुए देखे हैं। जब कभी उनकी इच्छानुसार कार्य नहीं हुआ, इच्छा के विपरीत कार्य हुआ, विपरीत कार्य करनेवाले अपने आश्रितों के प्रति उनका प्रचंड गुस्सा जाग्रत हो जाता है। वे आश्रितों को न कहनेवाली बातें कह देते हैं। उनकी बुराई करते रहते हैं, उनके प्रति तिरस्कारपूर्ण रवैया बनाये रखते हैं। परिणामस्वरूप, दूसरों को सुधारने की भावना नष्ट हो जाती है और 'यह तो कभी सुधरेगा ही नहीं...' ऐसा गलत खयाल वे बाँध लेते हैं। कवि भारवि की एक घटना : संस्कृत भाषा के एक महाकवि हो गए, जिनका नाम था भारवि | भारवि के यौवनकाल का एक दिलचस्प प्रसंग है। भारवि के पिताजी का नाम था त्रिलोचन और माँ का नाम था भगवती । भारवि जैसे शास्त्रज्ञ था वैसे मेधावी भी था । परन्तु अपनी शास्त्रज्ञता और बुद्धिमत्ता का उसको बड़ा अभिमान था। शास्त्रज्ञता और बुद्धिमत्ता के साथ नम्रता बनी रहे, तो तो वह मनुष्य महात्मा बन जाय! पिता त्रिलोचन भी प्रखर विद्वान और प्रज्ञावंत थे। 'युवान अभिमानी पुत्र को हितकारी बात...उपदेश देना प्रत्युत अनर्थकारी बनता है, यह बात वे अच्छी तरह जानते थे। ऐसा कटु अनुभव भी उनको हुआ होगा। इसलिए उन्होंने भारवि को उपदेश देना इष्ट नहीं समझा होगा | पुत्र का अभिमानप्रेरित अयोग्य आचरण भी वे मध्यस्थ भाव से देखते रहते थे। एक दिन नगर में राजा की ओर से उद्घोषणा हो रही थी। 'विदेशी पंडितों के साथ वाद-विवाद करके उनको पराजित करने की क्षमता रखनेवाले विद्वान राजसभा में पधारे।' उद्घोषणा सुनकर भारवि पहुँचे राजसभा में | महाराज को प्रणाम कर, भारवि ने कहा : 'महाराजा, मैं किसी भी पंडित के साथ वाद-विवाद कर सकता हूँ। मुझे आत्मविश्वास है कि मैं वाद-विवाद में विजय प्राप्त करूँगा।' महाराजा प्रसन्न हुए | भारवि का राजसभा में विदेशी पंडित के साथ वाद-विवाद हुआ । भारवि ने विजय प्राप्त की। महाराजा भारवि के प्रति अत्यंत आदरभाववाले बन गये। उन्होंने स्नेह से भारवि को आलिंगन दिया और हाथी पर भारवि को बिठाकर, स्वयं राजा चामर दुलोता हुआ और महामंत्री छत्र धारण करता हुआ भारवि को उसके घर छोड़ने आये। भारवि के माता-पिता ने राजा का भावपूर्ण स्वागत किया। राजा ने दोनों को नमस्कार किया और कहा : 'आपके दर्शन करके मैं कृतार्थ हुआ। त्रिलोचन ने कहा : 'हे दक्षिणापथ के राजेश्वर! आप जैसे नरेश्वर ने मुझ जैसे रंक के गृह को For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339