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प्रवचन-१९ कोशा भी समझदार श्राविका बन गई थी :
कोशा के हृदय में मुनि के प्रति गुस्सा नहीं आया, करुणा आई। 'यह मुनि पथभ्रष्ट बन जायेंगे, पर मैं उनको पथभ्रष्ट नहीं होने दूंगी। क्योंकि मैं अब श्राविका हूँ। श्रमणोपासिका हूँ। मेरा कर्तव्य है कि कभी पापकर्मों के उदय से मनुष्य पथभ्रष्ट बन जाता हो तो उसको पथभ्रष्ट नहीं होने देना । परन्तु इस समय इस मुनि को उपदेश देने से अच्छा परिणाम नहीं आएगा... इनको सच्चा भान कराने के लिए दूसरा उपाय करना होगा।' कोशा ने तुरन्त ही मुनिराज से कहा : ___ 'महाराज! आप जानते हो न कि हम लोग तो वेश्या हैं। वेश्या को तो पैसे से संबंध होता है। आप पैसे लाए हो?' ___ अब मुनि विचार में पड़ गए! उन्होंने कहा : 'मेरे पास पैसे तो नहीं हैं! मैं पैसा कहाँ से लाऊँ?'
कोशा ने कहा : 'कहीं से भी लाइए! पैसे के बिना मेरे यहाँ नहीं रह सकते। जाइए नेपाल! नेपाल का राजा साधु-संतों का भक्त है। लाख रूपये की कम्बल भेट देता है । आप यदि वह रत्नकम्बल ले आते हैं तो मेरे यहाँ रह सकते हैं और सुख पा सकते हैं!'
मुनि के दिल-दिमाग पर अब कोशा छा गई थी। कोशा के रूप ने मुनि को विकारविनाश बना दिया था। कोशा के शब्दों ने और हावभावों ने मुनि के वैराग्य को नष्ट कर दिया था। वे अपने साधुपन को भूल गए और रत्नकम्बल लाने नेपाल की ओर चल पड़े! ईर्ष्या तो आग है :
किसलिए वे कोशा के वहाँ आए थे और क्या हो गया? कुछ समझते हो या नहीं? ईर्ष्या से मनुष्य का पतन किस प्रकार होता है, समझ गए न? जब ऐसे तपस्वी और शूरवीर मुनि का भी पतन हो जाता है तो फिर आप लोगों का क्या होगा? इसलिए कहता हूँ कि ईर्ष्या का त्याग करो, प्रमोदभावना से ईर्ष्या दूर होती है। प्रमोदभावना का प्रतिदिन अभ्यास करो। सुखी और गुणवानों की ईर्ष्या कभी मत करो। कम से कम अपने स्नेही-स्वजन और संबंधी स्त्री-पुरुषों की तो निन्दा, ईर्ष्या मत करो | भाई भाई की ईर्ष्या कर रहा है! सास बहू की और बहू सास की, पिता पुत्र की और पुत्र पिता की ईर्ष्या कर
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