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प्रवचन-१९ दिया | मोह के अन्धकार में ज्ञान का रत्नदीपक जला दिया! कोशा इसलिए सच्ची श्राविका थी।
ऐसी ज्ञानी और विवेकी श्राविकाएँ जिनको नहीं मिली थीं, ऐसे कई महामुनि... जो कि कामवासना से ग्रसित हो गये थे, उनका पतन ही हुआ था। आषाढाभूति महामुनि का पतन क्यों हुआ? वे दो लड़कियाँ... जो एक नटराज की पुत्रियाँ थीं, श्राविकाएँ नहीं थीं, आषाढाभूति का पतन कर दिया दोनों ने मिलकर | नन्दीषेण महामुनि को वेश्या मिली थी, श्राविका नहीं थी, तो पतन हो गया था। अरणिक मुनि का पतन भी इसी वजह से हुआ था, वह महिला श्राविका नहीं थी। श्राविका कब कही जाती है? __ जैन परिवार में जन्म होने मात्र से कोई महिला श्राविका नहीं बन जाती है। मंदिर में जाने मात्र से, उपाश्रय में जाने मात्र से, सामयिक-प्रतिक्रमण की क्रियाएँ करने मात्र से श्राविका नहीं बना जाता। श्राविका बनने के लिए, श्राविका बने रहने के लिए अच्छा मनोबल चाहिए, अच्छा ज्ञान चाहिए, विवेक और पारलौकिक दृष्टि चाहिए। आज ये सारी बातें कहाँ से लायें? मनोबल खतम जैसा बन गया है। ज्ञान, तत्त्वज्ञान तो है ही नहीं। विवेक नष्ट होता जा रहा है और पारलौकिक दृष्टि रही नहीं है। वर्तमान जीवन के ही सुख-दुःखों के विचारों में मनुष्य उलझ गया है। ऐसी महिलाओं से कोई असाधारण, असामान्य आशा रखना व्यर्थ है | जो अपने जीवन को नहीं बना सकतीं, अपने परिवार के जीवन को नहीं बना सकतीं, वह दूसरों के जीवन-विकास में, आत्मकल्याण में कैसे सहायक बन सकती हैं? गिरते हुए मनुष्यों को कैसे बचा सकती हैं?
प्रमोदभावना से सदा खिले-खिले रहो : __ ज्यों सिंहगुफावासी मुनि के अन्तःकरण में श्री स्थूलभद्रजी के प्रति प्रमोदभाव आया, उनकी अपनी भूल समझ में आ गई। पुनः संयमधर्म में स्थिरता प्राप्त हो गई। समताभाव में स्थिरता प्राप्त हो गई। दूसरे जीवों के प्रति ईर्ष्या न रहे और दूसरे जीवों के गुण देखकर प्रमोदभाव जाग्रत हो जाए, बस, समतासागर में गोते लगाते रहो और अपूर्व आनन्द पाते रहो। मन की प्रसन्नता निरन्तर बढ़ती जाएगी और आपके आत्मगुण विकसित होते जायेंगे।
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