Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 274
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६६ प्रवचन-२० स्वामी को जब आप नयसार के भव में पढ़ोगे, नयसार का अतिथि-सत्कार देखकर हर्षविभोर बन जाओगे! भगवान शान्तिनाथ का मेघरथ राजा का भव पढ़ोगे, तब एक पक्षी को बचाने के लिए अपना पूरा शरीर समर्पित करनेवाले मेघरथ के प्रति आपका हृदय प्रेम से भर जाएगा। घोर उपसर्ग करनेवाले संगम के प्रति और गोशालक के प्रति भी गुस्सा नहीं। मात्र करुणा करनेवाले भगवान महावीर को कल्पनासृष्टि में देखने पर, क्या उनके प्रति प्रीति का भाव जाग्रत नहीं होता? दो कानों में कीलें ठोकनेवाले ग्वाले के प्रति भी किसी प्रकार का रोष नहीं करनेवाले उन परमपुरुष के प्रति स्नेह जाग्रत नहीं होता क्या? परमात्मा महावीर स्वामी का २७ भवों का जीवनचरित्र मननपूर्वक पढ़ो, आपको ऐसी ऐसी अद्भुत बातें जानने को मिलेंगी कि आपका परमात्मा के साथ घनिष्ट संबंध बंध ही जाएगा। प्रीति का भाव जाग्रत होगा ही। परमात्मप्रेम से मनःप्रमोद : प्रमोदभावना का प्रथम विषय है परमात्मतत्त्व! परम... शाश्वत् सुख के स्वामी परमात्मा के प्रति सम्पूर्ण प्रमोदभाव जाग्रत करने का है। अर्थात् परमात्मा से प्रीति बाँधने की है। ज्यों-ज्यों परमात्मा के प्रति प्रीति दृढ़ होती जाएगी, संसार के तुच्छ असार सुखों से मन उठता जाएगा। रागी-द्वेषी जीवों से प्रीति के बंधन छूटते जायेंगे। आपका मन प्रसन्नता से भरता जाएगा। आपका आन्तरिक आनन्द प्रतिक्षण बढ़ता जाएगा। परमात्मा के गुणों के अनुचिन्तन से मनःप्रसाद की प्राप्ति होती ही है। गुणों के चिन्तन से आप में गुण बढ़ते जायेंगे। आपकी गुण-समृद्धि बढ़ती जाएगी। आपका आत्मस्वरूप प्रकाशित होता जाएगा। प्रमोदभावना के पात्र साधुपुरूष : जिस प्रकार अरिहंत और सिद्ध भगवंतों ने परमसुख, परमानन्द और अव्याबाध स्थिति प्राप्त कर ली है उस प्रकार निर्ग्रन्थ साधुपुरुषों ने परम सुखशाश्वत् सुख पाने का पुरुषार्थ किया है, इसलिए वैसे साधक महात्मा पुरुष भी अनुमोदना के, प्रमोद के पात्र हैं। सदैव जो धर्मध्यान में निमग्न रहते हैं, प्रशान्त रहते हैं, गम्भीर आशयवाले होते हैं, सर्व पापव्यापारों के त्यागी होते हैं, पंचाचार-ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्र्याचार, और तपाचार, वीर्याचार के पालक होते हैं, पांच महाव्रत (प्राणातिपात विरमण, मृषावाद-विरमण, अदत्तादान For Private And Personal Use Only

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