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प्रवचन-२०
२७१ आजकल तो मनुष्य का मनोबल ही टूट गया है। हीनसत्त्व बन गया है मनुष्य । - व्रत-नियम का पालन दुष्कर बन गया है। ग्रहण किए हुए व्रत का भंग कर देना, आसान काम हो गया है। धार्मिक प्रतिज्ञा का पालन करने का जैसे सत्व नहीं रहा, वैसे सांसारिक जीवन में भी प्रतिज्ञापालन का सत्व नहीं रहा। आजकल तलाक कितने हो रहे हैं। शादी क्या है? जीवनपर्यन्त मनवचन-काया से स्त्री-पुरुष पति-पत्नी के संबंध में प्रतिज्ञापूर्वक बंधते है न? हीनसत्ववाले लोग ऐसी प्रतिज्ञा भी निभा नहीं सकते।।
महान पुरुषों में यह मौलिक विशेषता होती है कि वे सत्वशील होते हैं और ली हुई प्रतिज्ञा का पालन प्राणों की परवाह किए बिना करते हैं। यह विशेषता आत्मा की आध्यात्मिक विकासयात्रा के प्रारंभ में ही जाग्रत होती है।
'प्राणान् त्यजति धर्मार्थं, न धर्मं प्राणसंकटे।' 'धर्म के लिए प्राणों का त्याग करता है, प्राण बचाने के लिए धर्म का त्याग नहीं करता है।' हरिभद्र पुरोहित साध्वीजी के उपाश्रय में : ___ 'योगदृष्टि समुच्चय' ग्रन्थ में यह बात हरिभद्रसूरिजी ने स्वयं ही कही है! जो बात उनके स्वयं के जीवन में थी। साध्वी का स्वाध्याय का श्लोक 'चक्की दुगं...' उनकी समझ में नहीं आया। उन्होंने उपाश्रय में जाकर साध्वीजी से पूछने का सोचा। वे उपाश्रय में आये | उपाश्रय में एक काष्ठासन पर एक प्रौढ़ साध्वीजी विराजमान थीं। हरिभद्र पुरोहित ने अंजलि रचा कर, मस्तक नमा कर साध्वीजी को प्रणाम किया और पूछा : 'मैं भीतर आ सकता हूँ?' साध्वीजी ने 'धर्मलाभ' दिया और भीतर आने की अनुमति प्रदान की। साध्वीजी के आशीर्वाद वचन में हरिभद्र पुरोहित को अमृत का आस्वाद मिला | साध्वीजी के दर्शन से उसकी अन्तरात्मा ने प्रसन्नता अनुभव की। नमस्कार कर पुरोहितजी ने अभिवादन किया और बोले :
'हे पूजनीया, अभी अभी उपाश्रय में जो स्वाध्याय हो रहा था, उसमें वह 'चक्की दुगं...' वाला श्लोक मैंने सुना, उस श्लोक का अर्थ ठीक रूप से मेरी समझ में नहीं आया, मैं अर्थ जानने की जिज्ञासा से आपके पास आया हूँ, आप मेरे प्रति कृपा करेंगी?
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