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प्रवचन-२० अपने शील की रक्षा में तत्पर रहती हैं, उनके प्रति कभी भी दुर्भावना न आ जाय, उसकी जाग्रति रहनी चाहिए। ___ परमात्मा जिनेश्वरदेव के धर्मशासन में साध्वीजी का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। साध्वीजी में अनेक प्रकार की उत्तम धर्म-आराधना देखी जाती है। जीवन में हजारों आयंबिल की तपश्चर्या करनेवाली अनेक साध्वीजी वर्तमानकाल में भी हैं। हजारों श्लोकों को कंठस्थ कर, प्रतिदिन स्वाध्याय में लीन रहनेवाली साध्वीजी भी आज देखी जाती है। गुरुजनों की सेवाभक्ति और विनय करनेवाली अनेक साध्वीजी के दर्शन होते हैं। ऐसे भोग-विलास और विषय-वासना से भरपूर काल में, संसार के सारे सुख-साधन छोड़कर संयमधर्म के कठोर व्रतनियम पालन करते हुए जीवन व्यतीत करना, आसान काम नहीं है, दुष्कर कार्य है। ऐसा दुष्कर कार्य करनेवाली साध्वीजी के प्रति अपने हृदय में सद्भावना होनी चाहिए। ___ अपने धर्मग्रन्थों में, भगवान ऋषभदेव के समय में साध्वी ब्राह्मी और सुन्दरी वगैरह का वर्णन आता है। बाहुबली को केवलज्ञान का मार्ग किसने बताया था? साध्वी ब्राह्मी और सुन्दरी ने! वैसे इसी 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ के रचयिता हरिभद्रसूरिजी को हरिभद्र पुरोहित से हरिभद्रमुनि किसने बनाया था? हरिभद्र पुरोहित के हृदय में सद्धर्म की स्थापना किसने की थी? याकिनीमहत्तरा नाम की एक साध्वी ने! हरिभद्रसूरिजी जैसे महान श्रुतधर ने इस साध्वी को 'माता' का स्थान दिया और अपने अनेक ग्रन्थों में अपने स्वयं का परिचय 'याकिनीमहत्तरासुनु' नाम से दिया । जानते हो न हरिभद्रसूरिजी का जीवन वृत्तान्त?
सभा में से : नहीं जी, हम लोगों को ऐसी बातें सुनने को ही नहीं मिलीं!
महाराजश्री : कोई चिन्ता नहीं, मैं सुनाऊँगा! इस चातुर्मास में सब सुन लो! परन्तु सुनने मात्र से कोई विशेष लाभ होनेवाला नहीं है। श्रवण के बाद चिन्तन और मनन करना चाहिए। सुनने के बाद घर जाते हो, दुकान जाते हो, जब समय मिले, यहाँ सुनी हुई बातें याद करो और चिन्तन-मनन करो। आचार्यश्री हरिभद्रसूरीश्वरजी : _हरिभद्र, चित्तौड़ की राजसभा में पुरोहित का पद शोभायमान करते थे। चौदह विद्याओं वेद-वेदांगों के वे पारगामी थे। अच्छे प्रसिद्ध विद्वान थे। परन्तु विद्वत्ता के साथ-साथ एक बड़ा दोष था उनमें अभिमान का! वे अपने आपको संसार का सर्वश्रेष्ठ विद्वान मानते थे। इसलिए वे अपने पेट पर एक पट्टी बाँध
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