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प्रवचन-१९
२५५ हृदय में यह परम करुणा थी। उसने ऐसा नहीं सोचा कि : 'मेरे गुरुदेव श्री स्थूलभद्रजी के प्रति ईर्ष्या होने से, उनकी तुलना करने यहाँ आए हैं... तो बता दूँ इसको, फँसा दूँ मेरे मोहपाश में गिरा दूँ इस ईर्ष्यालु को।' ऐसा गंदा और निम्न स्तर का विचार कोशा ने नहीं किया।
(२) कोशा ने मुनि को अपने घर आते ही और चातुर्मास करने की बात कहते ही उपदेश देना शुरू नहीं किया, बल्कि उनको नेपाल भेजा, रत्नकम्बल भी मँगवाया और बाद में जब रत्नकम्बल का मूल्य मुनि ने बताया, तब कोशा ने महाव्रतों का मूल्य बताया! उपदेश देने मात्र से कर्तव्य पूर्ण नहीं हो जाता है। उपदेश देकर गिरती हुई आत्मा को बचा लेने में कर्तव्यपूर्णता होती है।
(३) कोशा ने जो उपदेश दिया, बड़े विनय से, बड़ी गम्भीरता से और मुनिराज की मर्यादा का पालन करते हुए दिया। कोशा की बातों में कटुता नहीं थी, तिरस्कार नहीं था। मुनिराज के गुणों की प्रशंसा भी की थी। आज ऐसी श्राविकाएँ कहाँ?
श्राविकाएँ यदि ऐसी हों और कभी कोई मुनि का पापोदय जाग्रत हो, तो श्राविका मुनि की अनुचित प्रार्थना का स्वीकार तो नहीं करें, वरन् मुनि को ऐसी बातें कहें कि मुनि होश में आ जाय | मुनि का कामोन्माद शान्त हो जाय ।
आज तो दुर्भाग्य है अपना । ऐसी श्राविकाएँ लाएँ कहाँ से? अपने पतिदेवों को भी मार्ग पर... सन्मार्ग पर रखे तो बहुत है! श्राविका स्वयं सन्मार्गस्थित रहे तो भी बहुत है! आजकल श्राविकाएँ भी बीभत्स सिनेमा देखने जाती हैं, क्लबों में जाती हैं... अनेक व्यसनों की शिकार बन गई हैं। ऐसी श्राविकाओं से कौन-सी अपेक्षाएँ रखी जाय? कभी-कभी तो ऐसा सुनने को मिलता है कि अच्छे संयमी मुनि को ऐसी महिलाएँ गिराने का काम करती हैं। मुनि में भी रूप यौवन देखा, कि उसको भी पतित करने में देर नहीं!
सभा में से : मुनि का मन स्थिर हो तो औरत क्या कर सकती है? ___ महाराजश्री : मुनि का मन सदैव स्थिर रहे, ऐसा नियम नहीं है। कभी मोहनीय कर्म का प्रबल उदय आ भी सकता है। उस समय यदि सामने जिनशासन की श्राविका हो तो मुनि की कामाग्नि में घी डालने की चेष्टा नहीं करेगी, पानी डालने का काम करेगी। मुनि की कामवासना संतुष्ट करने की प्रवृत्ति नहीं करेगी, कामवासना को शान्त-उपशान्त करने का काम करेगी।
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