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प्रवचन-१९
२५४ आप अपनी साधना की मंजिल पर आगे बढ़ते रहें। संसार के वैषयिक सुख तालपुट जहर से भी ज्यादा खतरनाक है। दिखने में वे सुख बड़े सुन्दर दिखते हैं... परन्तु तत्काल भावप्राणों का नाश करते हैं। मेरी आपसे करबद्ध प्रार्थना है कि आप अपने संयम में सुस्थिर बन जाएँ और मोक्ष पाने का, मुक्ति पाने का लक्ष्य कभी भी चूकें नहीं। __ हे मुनिवर! जब बात चली तो कह देती हूँ कि सच्चा सुख संयम धर्म में ही है। मेरे मन में भी संयम धर्म बस गया है। क्या करूँ मैं? पराधीन हूँ, विवश हूँ... अन्यथा अभी की अभी संसार छोड़कर चारित्र्यधर्म अंगीकार कर लेती। आपका अनन्त पुण्य का उदय है.... आपको महान चारित्र्यधर्म मिल गया है। अनन्त अनन्त जन्मों के पाप आपके धुल गए। आप कितनी अपूर्व कर्मनिर्जरा कर रहे हो! धन्य है आपका चारित्र्यजीवन...।' सिंहगुफावासी वापस संभल गए :
सिंहगुफावासी मुनि जमीन पर दृष्टि गड़ाये खड़े थे। आँखों में आँसू भर आये थे। हृदय घोर पश्चात्ताप से जल रहा था। कोशा के प्रति सच्चा प्रमोदभाव जाग्रत हो गया था। श्री स्थूलभद्रजी के प्रति अब ईर्ष्या का दुर्भाव नहीं रहा था। उनके प्रति भी अपूर्व प्रमोदभाव छलकने लगा था। मुनिवर ने कोशा कहा : ___ 'कोशा, तू सचमुच जिनशासन की सच्ची श्राविका है। मुझे पथभ्रष्ट होते तूने बचा लिया। दुर्गति में गिरते गिरते मेरा हाथ पकड़ लिया, मुझे बचा लिया। मुझ पर तेरा यह महान उपकार है... मैं तेरा यह उपकार कभी नहीं भूलूंगा। तूने मेरी मोहदशा मिटा दी, मुझे ज्ञानदृष्टि दे दी। अब मैं गुरुदेव के चरणों में जाऊँगा, मेरी गलतियों का प्रायश्चित्त करूँगा और आत्मकल्याण की साधना में लीन बनूँगा। श्री स्थूलभद्रजी जैसे कामविजेता महामुनि की पदरज मेरे सिर पर चढ़ाऊँगा... धर्मलाभ... मैं अब जाता हूँ।'
मुनि तो गुरुदेव के पास पहुंच गए और प्रायश्चित्त कर आत्मभाव को विशुद्ध कर लिया, परन्तु आप लोग कुछ समझे या नहीं? कोशा ने जो बातें महामुनि को सुनाई, जिस प्रकार और जिस समय सुनाई हैं, यह महत्त्वपूर्ण है। कोशा की ज्ञानदृष्टि व उदारता :
(१) गिरती हुई आत्मा को बचा लेने की परम करुणा चाहिए। कोशा के
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