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प्रवचन-१८ अपराधी के प्रति भी करुणा :
धर्मग्रन्थों में श्रेष्ठि सुव्रत का उदाहरण आता है। करोड़पति था वह । ग्यारह करोड़ सोनामुहरों का मालिक था। ग्यारह पत्नियों का पति था और एकादशी-तिथि का आराधक था। सुव्रत के साथ '११' का अंक जुड़ गया था। एक बार एकादशी के दिन, जब सुव्रत 'पौषधव्रत' धारण कर अपनी हवेली के एक एकान्त कमरे में धर्मध्यान में लीन था, रात्रि के समय चोरों ने उसकी हवेली में प्रवेश किया | सुव्रत की सारी संपत्ति हवेली में ही थी! उस जमाने में बैंकें कहाँ थी? 'सेफ डिपोजिट वाल्ट' कहाँ थे? श्रीमंत लोग अपनी हवेली में ही संपत्ति रखते थे। कोई जमीन में गाड़ देता तो कोई तिजोरी में भर देता! कोई भित्ति में छिपाता तो कोई मकान की छत में छिपाता!
हवेली में सब सो गये थे, सुव्रत श्रेष्ठि ध्यान लगाकर खड़े थे। चोरों ने धनमाल इकट्ठा किया, गठरियाँ भी बांधी। सुव्रत ने जब ध्यान पूरा किया, उसको मालूम पड़ गया। परन्तु चोरों को रोकने कोई प्रयत्न नहीं किया। 'पौषधव्रत' में थे, संसार की कोई भी प्रवृत्ति नहीं करने की प्रतिज्ञा थी! वैसे, उनका हृदय इतना अनासक्त था कि 'मेरी संपत्ति, करोड़ो का धन चोर ले जाएँगे...तो मेरा क्या होगा?' ऐसा विचार भी नहीं आया। उसने तो सोचा कि 'जो वास्तव में मेरा है, उसको कोई ले जा नहीं सकता है और जो मेरा नहीं है, उसको कोई ले जाता है तो मुझे क्या? मेरा है सम्यकज्ञान, सम्यकदर्शन और सम्यक्चरित्र। मेरे हैं अक्षय गुण! उसकी चोरी कोई नहीं कर सकता। यह भौतिक संपत्ति मेरी है ही नहीं। मैं क्यों चिन्ता करूँ उसकी?' क्या था सुव्रत सेठ में? ___ ग्यारह करोड़ सोनामुहरों का मालिक क्या चिन्तन करता है? कुछ समझ में आता है? धन-दौलत के प्रति उसकी कैसी दृष्टि है? है कोई ममत्व? है कोई परिग्रह की वासना? धन के पर्वत पर बैठा है फिर भी उस पर्वत पर कोई राग नहीं! यदि संपत्ति पर राग होता, ममत्व होता तो क्या करता? पौषधव्रत को भंग कर देता! चिल्लाता... रक्षकों को बुलाता, धमाल कर देता वहाँ? चोरों को कैसी सजा करवाता? सुव्रत को चोरों के प्रति कोई रोष नहीं आया, द्वेष नहीं आया। जड़ पर राग होता तो जीव के ऊपर द्वेष अवश्य आता! जीव के प्रति राग था, जड़ के प्रति वैराग्य था, फिर द्वेष कहाँ से आता? जड़-राग और जीवद्वेष ही तो सर्व अनर्थों का मूल है। अनित्यादि भावनाओं के सतत
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