________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन-१८
२४५ चोरी करनेवाला पापी है, दुष्ट है, अधम है, ऐसा सोचने से पहले 'चोरी करनेवाला दुःखी है!' यह विचार करो। 'दुष्ट है', ऐसा सोचने पर द्वेष उभरेगा। 'दुःखी है' ऐसा विचार सोचने पर करुणा उभरेगी। सुव्रत चोरों को 'दुःखी' देखते हैं। इस भव में दुःखी और परभव के भी दुःखी । इसलिए उनके हृदय में करुणा उभरी।
सुव्रत की भाव करुणा का प्रभाव चोरों पर कितना गहरा पड़ा? चोर सुव्रत के चरणों में गिर पड़े। आँखों में से आँसू बहाते...गद्गद् स्वर से बोलने लगे : 'हे महात्मा पुरुष, हम कभी भी चोरी नहीं करेंगे। आपने हमको अभयदान दिया है। आपका उपकार कभी नहीं भूलेंगे। आपने हमारे भयंकर अपराध को क्षमा कर दिया। आप देवता पुरुष हो।'
राजा भी सुव्रत की अत्यन्त करुणा से काफी प्रभावित हुआ। सुव्रत का धर्मतेज हजारों सूर्य से भी ज्यादा चमकने लगा। जिस-जिस ने यह घटना सुनी होगी नगर में, उन सबके मन सुव्रत के प्रति कितने स्नेहयुक्त और श्रद्धायुक्त बने होंगे? करुणावंत पुरुष दूसरों के हृदय में धर्म की सच्ची स्थापना कर देते हैं। धर्म की श्रेष्ठ प्रभावना करुणावंत लोग ही करते हैं। जिसके पास धर्म हो, वह दूसरों को धर्म दे सकता है न? करुणायुक्त हृदय ही तो धर्म है। जिस हृदय में मैत्री, प्रमोद और करुणा नहीं, वहाँ धर्म है ही नहीं, फिर धर्मप्रभावना करेगा कैसे? दूसरों को धर्म देगा कैसे?
सुव्रत का एकादशी-आराधना का अनुष्ठान वास्तव में 'धर्म' था, क्योंकि वह अनुष्ठान जिनवचनानुसार था, यथोदित था और मैत्री-करुणा आदि शुद्ध भावनाओं वाला था। ऐसा अनुष्ठान ही 'धर्म' कहलाता है। धर्म की भाषा बराबर समझ लो। विस्तार से इसलिए समझा रहा हूँ कि आजकल 'धर्म' की मनमानी बहुत परिभाषाएँ होने लगी हैं। अपना स्वार्थ साधने के लिए अनेक धूर्त धर्म की बातें कर रहे हैं। हालाँकि ऐसी धूर्तता आजकल की नहीं है, हजारों वर्ष से चली आ रही है। इसलिए काफी सतर्क रहना पड़ता है। किसी से भी धर्म की बात सुनो, उस पर सोचना कि 'यह धर्मानुष्ठान जिनवचन से विपरीत तो नहीं है न? यथोदित है न? मैत्री-प्रमोद आदि भावनाओं से युक्त है न? मैत्रीभावना और करुणाभावना का विवेचन यहाँ पूरा करता हूँ। अब हम 'प्रमोदभावना' के विषय में चिन्तन करेंगे और तत्पश्चात् 'माध्यस्थ्य भावना' की अनुप्रेक्षा करेंगे।
आज, बस इतना ही।
For Private And Personal Use Only