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प्रवचन-१८
२४० पुलिस शरमा गई। युवक को बड़ा आश्चर्य हुआ। न्यायाधीश ने उसको मुक्त करने का आदेश दे दिया और वे सारे कप भी उसको लौटाने का आदेश जारी कर दिया। पुलिस ने धर्मगुरु से क्षमा माँगी। धर्मगुरु उस युवक को लेकर कोर्ट से बाहर निकले, बाहर आते ही युवक धर्मगुरु के चरणों में गिर पड़ा। फूट-फूटकर रोने लगा। धर्मगुरु ने उसको अपनी छाती से लगाया और आश्वासन देने लगे। युवक ने कहा : 'मैं जीवन में अब कभी भी चोरी नहीं करूँगा। आपने मुझे बचा लिया । मुझ पर बहुत बड़ी दया की।' ___ धर्मगुरु ने कहा : 'तेरा चेहरा देखने से मुझे लगा कि इतना अच्छा युवक चोरी का धंधा नहीं कर सकता। कोई विकट परिस्थिति ने इसको मजबूर किया लगता है चोरी करने को। इसलिए मैंने न्यायाधीश को ऐसा कहा। अब मुझे तू बता कि तुझे चोरी क्यों करनी पड़ी?' __ युवक ने कहा : 'मैं अभी दुःखी हालात में जी रहा हूँ। मेरे पास पैसे नहीं हैं | मेरी एक बहन है, उसकी शादी करनी है। माता-पिता का स्वर्गवास हो गया है। बहन के प्रति मुझे प्यार है। शादी के लिए पैसा चाहिए...मैंने मेरे स्नेही, मित्रों से सहायता माँगी, परन्तु किसी ने मुझे सहायता नहीं की, इसलिए चोरी करने निकल पड़ा और पकड़ा गया।' युवक ने सही बात बता दी धर्मगुरु को। धर्मगुरु उसको चर्च में ले गये और उसकी बहन की शादी के लिए पूरी आर्थिक व्यवस्था कर दी। युवक के हृदय में धर्मगुरु के प्रति अपार श्रद्धा स्थापित हो गई। चोरी नहीं करने का दृढ़ संकल्प कर लिया। उसका जीवन सुधर गया। उसका जीवन सुधारने के लिए तो धर्मगुरु ने असत्य बोला! दूसरों का जीवन बचाने के लिए, सुधारने के लिए कभी असत्य का आश्रय लेना पड़े, वह पाप नहीं है। सत्य : असत्य-सापेक्ष धर्म : __मान लो कि एक परिवार है। परिवार के स्त्री-पुरुष-पति-पत्नी अपने दो छोटे-छोटे बच्चों को घर में छोड़कर बाहर गये हैं। जब वे वापस आते हैं, घर में आग लग गई है। दोनों बच्चे तो खेल रहे हैं । उनको आग का भय नहीं लग रहा है। माता-पिता उनको घर से बाहर आ जाने को कह रहे हैं। परन्तु वे तो खेलने में तल्लीन हैं। आग बढ़ रही है माँ-बाप भीतर जाने की हिम्मत नहीं कर रहे हैं... 'बच्चों को कैसे बाहर निकाले जाय?' माँ रो रही है... वहाँ बाप को एक उपाय सूझता है, उसने कहा : 'सुनो बेटे, तुम्हारे लिए मैं साइकिल ले आया हूँ, जो पहले बाहर आयेगा उसको साइकिल मिलेगी।' सुनते ही
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