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प्रवचन-१३
यदि मैं युगबाहु को यह बात कहूँगी तो उनके मन में मणिरथ के प्रति घोर घृणा पैदा होगी। भयंकर रोष उत्पन्न होगा। दोनों भाइयों के बीच लड़ाई छिड़ सकती है। मेरे निमित्त राजपरिवार में कलह... लड़ाई और विनाश मैं नहीं चाहती।' मदनरेखा की यह ज्ञानदृष्टि है। जो काम समझाने से, सरलता से निपटता हो, उस काम को उलझाना नहीं चाहिए, उस काम को झगड़े में डालना नहीं चाहिए | मदनरेखा ने सोचा कि : 'मेरा सन्देश सुनकर राजा शान्त हो जायेगा | मेरी अनिच्छा जानने के बाद वह आगे नहीं बढ़ेगा। अब शायद वह अपना मुँह भी मुझे नहीं दिखाएगा! ऐसे ही मामला सुलझ जाएगा तो दो भाइयों के बीच स्नेह-सम्बन्ध भी अखंड रह सकेगा। आपत्ति में भी औरों की चिंता :
राजा का दुष्ट विचार जानने पर भी मदनरेखा के मन में राजा के प्रति वैरभावना पैदा नहीं होती है। स्वयं महासती है, सदाचार की सख्त पक्षपाती है, दुराचार और व्यभिचार का विचार भी उसके मन में कभी पैदा नहीं हुआ है। राजा के प्रति उसका विचार कितना उत्तम है? 'ऐसा अनुचित करने से तुम्हारा अहित होगा... तुम डूब जाओगे दुःखसागर में ।' राजा मर कर दुर्गति में न चला जाए, इसकी चिन्ता मदनरेखा करती है। यदि उसके हृदय में मैत्रीभावना-परहितचिन्ता नहीं होती तो वह तुरंत ही अपने पति युवराज से कह देती कि : 'देखो, तुम्हारे बड़े भाई का चरित्र! दासी के साथ मेरे लिए ऐसा सन्देश भेजा कि वे मुझे अपनी पत्नी बनाना चाहते हैं। अभी तक मैंने उनकी ऐसी दुष्टभावना नहीं जानी थी। मुझे क्या पता कि उनके मन में ऐसी बुरी वासना है, अन्यथा मैं उनसे बोलती भी नहीं, उनकी दी हुई कोई वस्तु भी ग्रहण नहीं करती। अब मेरी समझ में आया कि वे क्यों मुझे अच्छे-अच्छे अलंकार देते थे। बढ़िया-बढ़िया वस्त्र देते थे। वे मुझे इस प्रकार आकर्षित करना चाहते थे। मैं मर जाना पसन्द करूँगी, परन्तु उनके वश तो नहीं होऊँगी।'
यदि युगबाहु को ऐसी बात करती मदनरेखा, तो कैसी यादवास्थली मच जाती राजपरिवार में? युगबाहु नंगी तलवार लेकर दौड़ता राजा के पास और दोनों भाइयों के बीच खूखार युद्ध छिड़ जाता। मदनरेखा के पास ज्ञानदृष्टि थी, उसके अन्तःचक्षु खुले हुए थे, परन्तु मणिरथ के पास कहाँ ज्ञानदृष्टि थी? वह तो बेचारा मोहदृष्टि से व्याकुल था । कामविकारों से विह्वल मणिरथ जब दासी से मदनरेखा का प्रत्युत्तर सुनता है, क्षणभर बेचैन हो जाता है। सीता के
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