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प्रवचन-१४
१८९ बहुत ही आवश्यक था। मदनरेखा ने अपना प्रयत्न पूरी लगन से किया। कितनी अच्छी-अच्छी बात सुनाती है। युगबाहु को मदनरेखा के प्रति प्रेम था, श्रद्धा थी, सद्भाव था, इसलिए मदनरेखा की बातें उसके हृदय तक पहुँचती हैं | यदि मात्र दैहिक राग होता, मात्र वासनाजन्य अनुराग होता तो मदनरेखा की बातें...ज्ञानभरपूर बातें पसन्द नहीं आतीं। इतना ही नहीं, यदि पूर्व जीवन में मदनरेखा-युगबाहु के बीच कभी-कभी तत्त्वचर्चा, धर्मचर्चा नहीं हुई होती
और युगबाहु को तत्त्वचर्चा में आनन्द नहीं आता होता, तो भी मृत्यु के समय मदनरेखा की धर्मप्रेरणा उसको पसन्द नहीं आती। तीसरी बात है युगबाहु के निर्मल आत्मभाव की। कर्म-मल कुछ कम होने से ही मृत्यु-समय में धर्मप्रेरणा प्रिय लगती है। मृत्यु के वक्त धर्मप्रेरणा अच्छी किसे लगेगी?
मृत्यु के समय राग-द्वेष-मोह आदि अशुद्ध भाव मन में न रहें और मैत्री, समता, समाधि वगैरह विशुद्ध भाव मन में स्थापित हों, इसलिए तीन बातें समझ लो। युगबाहु और मदनरेखा के जीवन में से ये तीन बातें फलित होती हैं।
१. जिसके प्रति अपने हृदय में मैत्री, स्नेह और सद्भाव होगा, वह व्यक्ति यदि मृत्यु-समय पास में होगा और अन्तिम आराधना करवाएगा तो ही वह धर्मप्रेरणा अपने अंतःकरण को स्पर्श करेगी।
२. जीवनकाल में तत्त्वचर्चा, धर्मचर्चा में रसानुभूति की होगी तो मृत्यु-समय धर्मप्रेरणा प्रिय लगेगी।
३. आत्मा कर्मों के बंधनों से थोड़ी भी मुक्त हुई होगी तो जीवन के अन्त समय में परमात्म स्मरण होगा। परमात्मा का नाम याद आएगा। कर्मों की प्रबलता से अभिभूत जीव को भगवान का नाम प्यारा नहीं लगता। ग्यारह धर्मप्रेरणाएँ : मौत के समय :
मदनरेखा मृत्यु-आसन्न पति को स्वस्थ मन से अन्तिम आराधना कराती है। युगबाहु को मदनरेखा की एक-एक बात स्पर्श करती है। मदनरेखा ने भी कैसी सारभूत बातें कही हैं!
१. सावधान बनो! २. धीरता रखो! ३. खेद मत करो! ४. कर्मविपाक को सोचो!
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