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प्रवचन- १७
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पर इन्द्र को विश्वास नहीं है इसलिए मुझे रोकता है।' अपना उल्लू सिद्ध करनेवाले मनुष्य हों या देव हों, दूसरों पर आरोप मढ़ने में तनिक भी हिचकिचाते नहीं हैं । इन्द्र के मन में अफसोस हुआ : 'मैंने तो प्रशंसा की और भगवान के लिए उपद्रव पैदा कर दिया । '
संगम के उपद्रव :
संगम चला आया है पृथ्वी पर । जहाँ भगवान महावीर विचरते थे उस प्रदेश में चला गया । भगवान पर विविध उपद्रव करने शरू कर दिये । भगवान को शुद्ध भिक्षा भी नहीं मिलने देता है। कई दिनों तक विविध उपसर्ग करने पर भी भगवान महावीर विचलित नहीं होते हैं, उनका मनोबल नहीं टूटता है तब संगम ज्यादा उग्र बनता है। उसका 'अहं' खंडित हुआ था न ! उसने इस बात को अपनी 'प्रतिष्ठा' का प्रश्न बना दिया। छह-छह महीनों तक वह उपद्रव करता रहा। फिर भी भगवान महावीर मेरुवत् निश्चल रहे ! अत्यन्त क्रुद्ध संगम ने भीषण 'कालचक्र' भगवान पर छोड़ा | कालचक्र का इतना तीव्र प्रहार भगवान पर हुआ कि भगवान घुटनों तक जमीन में धँस गये । देवलोक के देवेन्द्र और देवों के मन इस घटना से अत्यन्त दुःखी हो गए। संगम के प्रति सब देव तीव्र रोषयुक्त हो गए । 'ऐसे दुष्ट देव को अब देवलोक में रहने नहीं देना चाहिए' उसे निकाल देने का निर्णय कर लिया इन्द्र ने।
कालचक्र का दारुण आघात होने पर भी भगवान का धैर्य अखंड रहा ! संगम चकित रह गया, निराश हो गया, घबरा भी उठा। अब उसको इन्द्र का भय लगा। उसका 'अहं' बरफ की तरह पानी-पानी हो गया। लम्बे निःश्वास के साथ जब वह देवलोक की तरफ चला, भगवान महावीर की आँखें करुणा के आँसुओं से भर आईं। महाकवि धनपाल ने इस प्रसंग का वर्णन 'तिलकमंजरी' के मंगलश्लोक में इतना हृदयस्पर्शी किया है कि पढ़ते-पढ़ते अपनी आँखें डबडबा जाएँ !
रक्षन्तु स्खलितोपसर्ग-गलित-प्रौढप्रतिज्ञाविद्यौ याति स्वाश्रयमर्जितांहसि सूरे निःश्वस्य संचारिता आजानुक्षितिमध्यमग्नवपुषः चक्राभिघातव्यथा
मूर्छान्ते करुणाभराञ्चितपुटा वीरस्य वो दृष्टयः ।।
करुणा से पूजित महावीर की आँखें हमारी रक्षा करो ! घोर पापकर्म
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