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प्रवचन-१७
२२८ उत्सुक हो उठा। माता-साध्वी को वहाँ ही स्थिरता करने को कह कर चन्द्रयश नगर से बाहर निकला। दो बिछुड़े भाइयों का मिलन :
नगर का दरवाजा खुला और शस्त्ररहित राजा को अपनी छावनी में आता देखकर नमि राजा को आश्चर्य हुआ। उसको साध्वीजी का वचन याद आया, तुरन्त याद आया : 'चन्द्रयश तेरा बड़ा भाई है।' उसने दूर से चन्द्रयश को अपनी तरफ आता देखा, वह भी खड़ा हो गया और बड़े भाई के सामने दौड़ा। युद्ध के मैदान पर दोनों भाइयों का मधुर मिलन हुआ | नमि चन्द्रयश के चरणों में गिर पड़ा | चन्द्रयश ने नमि को अपनी छाती से लगाया। दोनों की आँखों में से आँसू की धारा बहने लगी। सारा सैन्य स्तब्ध-सा हो गया। सैनिकों को पता नहीं था कि ये दोनों भाई हैं! हालाँकि वे जानते थे कि 'साध्वीजी आई थी और नगर में चली गई थी।'
चन्द्रयश टकटकी बाँधे अपने छोटे भाई का चेहरा देख रहा था। हृदय अपूर्व आनन्द अनुभव कर रहा था। नमि राजा भी बड़े भाई को अनिमेष नयनों से देख रहा था । नमिराजा चन्द्रयश को अपने निवास में ले गया | चन्द्रयश को सिंहासन पर बिठाकर नमि जमीन पर बैठ गया | चन्द्रयश ने कहा :
'वत्स, मैंने पिताजी की करुण मृत्यु मेरी आँखों से देखी है। मुझे तो तभी से इस राज्य के प्रति, संसार के प्रति, अरुचि हो गई है! एक मात्र कर्तव्यदृष्टि से राज्य कर रहा हूँ। अब यह कर्तव्यभार तू उठा | मैं अब संसारत्याग करना चाहूँगा। यूँ भी मेरा महान भाग्योदय है कि मुझे आज माता-साध्वी के पुण्यदर्शन मिल गए। मेरा छोटा भाई मुझे मिल गया।' __ नमि की आँखें आँसू बरसा रही थीं। चन्द्रयश के दोनों चरण पकड़कर नमि बोला : 'नहीं, नहीं, आपको मैं संसारत्याग नहीं करने दूँगा। आज ही तो पहली बार आपको देखा है, आज ही आप से मिला हूँ| आज तो माँ साध्वीजी ने परिचय करवाया है और आप आज ही संसारत्याग करने, मुझे छोड़ जाने की बात करते हो...। ऐसा मत करो।' संवेदनशीलता चिंतनशील बनाती है : ।
चन्द्रयश के मुँह पर गंभीरता छा गई। आँखों में वैराग्य की झलक आ गई। कई वर्षों से उसके हृदय में संसार के सुखों के प्रति अभाव तो आ ही गया था।
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