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प्रवचन-१६ अंतिम 'पुद्गल परावर्त' में आती है यानी 'अब वह निश्चित-निर्धारित कालसमय में मोक्ष पाएगी,' ऐसा केवलज्ञानी की दृष्टि में निश्चित होता है तब उस जीवात्मा में तीन विशेषताएँ प्रकट होती हैं :
१. दुःखी जीवों के प्रति अत्यंत दया। २. गुणवान पुरुषों के प्रति अद्वेष, और
३. सर्वत्र औचित्य-उचित प्रवृत्ति का पालन | मामूली करुणा : असीम करुणा :
देखिए, यहाँ सर्व प्रथम बात कौन-सी बताई? दया बताई न? दया कहो, करुणा कहो, एक ही बात है। मामूली दया नहीं, अत्यंत दया होती है उस जीवात्मा में।
मामूली करुणा और अत्यंत करुणा का भेद समझ लो। दुःखी जीव को देखकर हृदय में विचार आए कि 'बेचारा दुःखी है, कुछ दूं, भूखा है... चवन्नी दे दूं, खा लेगा कुछ...।' यह हुई मामूली करुणा! क्योंकि आपके पास उसको भरपेट खिलाने के लिए पैसे होते हुए भी आपने चवन्नी देकर ही सन्तोष कर लिया! अत्यंत करुणा क्या करवाती है, जानते हो? उसको पेट भर के खिलाएगी। चाहे एक रूपया लगे या दस रूपये लगें| करुणा के चार प्रकार 'षोड़शक' ग्रन्थ में आचार्यदेव ने बताए हैं :
१. मोहयुक्त करुणा २. असुख करुणा ३. संवेग करुणा ४. अन्यहित करुणा
इन चारों प्रकार की करुणा को समझ लो। करुणा का इतना तलस्पर्शी विवेचन दूसरे ग्रन्थों में नहीं मिलता है। हरिभद्रसूरिजी ने मनोवैज्ञानिक ढंग से 'षोड़शक' में बहुत ही अच्छा विवेचन किया है। १. मोहयुक्त करुणा :
मोह का अर्थ है अज्ञानता । अज्ञानमूलक करुणा होती है! जैसे एक माँ है, उसका लड़का बीमार पड़ा, वैद्य-डॉक्टर ने कहा है : 'इस बच्चे को मिठाई मत खिलाना, तला हुआ कोई पदार्थ मत खिलाना।' घर में मिठाई बनी है, लड़का मिठाई माँगता है। माँ को लड़के के प्रति बहुत प्रेम है, प्रेम के बहाव
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