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प्रवचन-१५
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युवराज युगबाहु की पत्नी है। तेरे मन में से परस्त्री की वासना को निकाल दे। परस्त्रीसेवन नर्क का रास्ता है। परस्त्रीसेवन का विचार भी मत करना। मदनरेखा का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। वह अपनी आत्मा को विशुद्ध करेगी।' ____ मणिप्रभ पिता-मुनिराज का उपदेश सुनकर शान्त हो गया। उसके मनोविकार जल गए। मन पवित्र हो गया। साधुपुरुषों के सत्संग का यही तो फल है। साधुसमागम से विषयवासना की भड़भड़ सुलगती आग बुझ जाती है। साधुपरिचय से कषायों का भयंकर दावानल भी बुझ जाता है। साधुपरिचय से घोर पापों का क्षण में नाश हो जाता है। मणिप्रभ की अन्तरात्मा इतनी निर्मल हो गई कि उसने खड़े होकर मदनरेखा से क्षमा माँगी और कहा : 'हे महासती! तुम मेरी बहन हो आज से, मैं तुम्हारा भाई हूँ। तुम्हारी हर आज्ञा का पालन करूँगा।' मदनरेखा की आँखों में हर्ष के आँसू उमड़ने लगे। उसने भी गद्गद् स्वर में कहा : 'भाई, तुम महान पिता के महान पुत्र हो! तुमने मुझ पर अनन्त उपकार किया यहाँ नंदीश्वरद्वीप पर लाकर | ऐसे अद्भुत तीर्थ की यात्रा करवाई और ऐसे महान ज्ञानी गुरुदेव के दर्शन करवाए। सचमुच, मेरा मन प्रसन्न हो उठा है।' मदनरेखा ने पुत्र के बारे में मुनिराज से पूछा :
मदनरेखा के मन में तीन बातों का हर्ष था : नन्दीश्वरद्वीप की दुर्लभ यात्रा सुलभ हो गई। मनःपर्यवज्ञानी ऐसे मणिचूड़ मुनीश्वर के दर्शन हो गए और शीलरक्षा हो गई। मदनरेखा के मन में अपना नवजात शिशु याद आ गया... उसने महामुनि को उस बच्चे के विषय में पूछकर अपने मन को शान्त करना चाहा। उसने विनय से मुनिराज को प्रश्न किया : ___ 'हे तारणहार! आपकी परमकृपा से मेरी शीलरक्षा हो गई। मैं निर्भय हो गई। प्रभो, मेरा नवजात शिशु, जिसको मैंने उस वृक्षघटा में सुलाया था, उसका क्या हुआ? कृपा करके बताइए। महामुनि ने करुणापूर्ण वाणी में कहा : ___ 'मदनरेखा, मणिप्रभ ने तुझे प्रज्ञप्तिविद्या की सहायता से जो बताया है, वह सही है। राजा पद्मरथ उस बच्चे को ले गया है और रानी पुष्पमाला को दिया है। राजा-रानी बड़े प्रेम से लड़के को पाल रहे हैं।'
'भगवंत! राजा को मेरे पुत्र के प्रति इतना स्नेह क्यों हुआ?' मदनरेखा ने अपनी जिज्ञासा व्यक्त की।
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