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प्रवचन-१४
१८४ उसे वेदना भी होती है। एक पेड़ के नीचे बैठा-बैठा पैर को देखता है । वहाँ से एक मुसाफिर गुजरता है। उसने सिंह के सामने देखा, सिंह की आँखों में वेदना थी, क्रूरता नहीं थी। मुसाफिर को दया आ गई। उसने घबराए बिना, सिंह के पैर में से काँटा निकाल दिया। सिंह ने प्रसन्नता से मुसाफिर का शरीर सूंघा । मुसाफिर वहाँ से अपने रास्ते चला गया।
कुछ दिनों के बाद वह मुसाफिर किसी अपराध में पकड़ा गया। राजा ने उसको मौत की सजा कर दी। उस राजा का मौत की सजा करने का तरीका निराला था! राजमहल के समीप उसने एक मैदान बनाया था, चारों ओर ऊँची-ऊंची दीवारे बनवाई थीं। एक तरफ सिंह का पिंजरा रखा था । अपराधी को उस मैदान में फेंक दिया जाता था और पिंजरे में से सिंह को मैदान में छोड़ दिया जाता था। भूखा सिंह उस मनुष्य को मार डालता था! राजा और उसके परिवार के लोग वह तमाशा देखते थे। मजा आता था तमाशा देखने में । कोई किसी को मारता हो, वह देखने में आप लोगों को तो मजा नहीं आता है न? दयालु हो न आप लोग तो!
सभा में से : ऐसा देखने को गाँव में नहीं मिलता है, इसलिए सिनेमा देखने जाते हैं! वहाँ ऐसे दृश्य देखने को मिलते हैं! हिंसक दृश्य मत देखा करो : ___ महाराजश्री : वैसे दृश्य देखते हुए आपके हृदय में क्या होता है? मरते हुए जीव को देखकर आपका जीव वेदना से कराहता है? मरते हुए के प्रति करुणा, सहानुभूति...जैसे भाव पैदा होते हैं या ऐसा देख-देखकर हृदय दयाहीन-करुणाहीन बन गया है? ऐसे हिंसक दृश्य बार-बार देखने से हृदय निर्दय बन जाता है। ऐसी हिंसक पुस्तक बार-बार पढ़ने से पढ़नेवाले का मन भी हिंसक बन जाता है। इसलिए कहता हूँ, बार बार कहता हूँ कि सिनेमा देखना छोड़ दो। ऐसे नॉवेल्स कहानियाँ, जासूसी उपन्यास वगैरह पढ़ना छोड़ दो। यदि मन को शुद्ध और धर्म का प्रभवस्थान बनाना हो तो। यदि शान्ति और प्रसन्नता का पातालकूप मन को बनाना हो तो। क्या विचार है? मन कितना सड़ गया है, वह तो सोचो जरा! अब भी उस सड़न को नहीं मिटाओगे तो मन पूरा नष्ट हो जाएगा। दूसरे जन्म में मन मिलेगा भी नहीं। शुद्ध मन की पहचान :
शुद्ध मन में, मन जब शुद्ध होना शुरू होता है, तब सर्वप्रथम दया-धर्म का
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