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प्रवचन-१३
१७४ आएगा न? भाई के प्रति द्वेष होगा न? यदि आपको पैसे प्यारे हैं तो द्वेष होगा ही। राग, द्वेष को जन्म देता है! द्वेष की योनि राग है! पैसे जड़ हैं, भाई चेतन है, जड़ का अनुराग चेतन के प्रति आपको द्वेषी बनाता है। पैसे के झगड़े में भाई भाई को मारता है न? पिता पुत्र की हत्या कर देता है न? पति पत्नी को जला देता है न? पढ़ते हो न अखबारों में पढ़ते परन्तु सोचते नहीं! यही बड़ा दुःख है। यहाँ मेरी बातें सुनते हो, परन्तु सोचते नहीं, इसलिए जीवन में कोई ठोस परिवर्तन नहीं आ रहा है।
किसी परस्त्री का सुन्दर शरीर देखकर राग हो जाता है न? शरीर जड़ है, जड़ शरीर का राग क्या करवाता है? यदि वह स्त्री अपने शरीर को छूने न दे तो उस रागी को क्या होगा? उस स्त्री के प्रति द्वेष होगा, अपहरण करेगा, बलात्कार करेगा... मार डालेगा। राजा मणिरथ ने अपने लघुभ्राता युगबाहु की हत्या कर दी थी न? क्यों? जड़ शरीर के राग के कारण ही! सुनी है कहानी? महासती मदनरेखा :
मालव प्रदेश में सुदर्शनपुर नगर था। वहाँ का राजा था मणिरथ । उसका लघुभ्राता था युगबाहु | युगबाहु युवराज था। युगबाहु की पत्नी थी मदनरेखा। मदनरेखा अत्यन्त रूपवती थी। मात्र रूपसुन्दरी नहीं थी, सुशीला थी, सुलक्षणा थी, सौभाग्यशालिनी थी। रूपवती स्त्री में ये सारी बातें दुर्लभ होती हैं | रूप और गुण का सहवास हजारों में किसी एक-दो मनुष्य में होता है। रूपवान व्यक्ति सुशील हो, सच्चरित्रि हो, सदाचारी हो तो वह महान पुण्यशाली, धन्य कहलाएगा | मदनरेखा वैसी पुण्यशालिनी सन्नारी थी। अपने पति युगबाहु के प्रति संपूर्ण वफादार थी। अपने मन में भी परपुरुष की अभिलाषा नहीं करती थी।
एक दिन राजा मणिरथ ने मदनरेखा को देखा । मदनरेखा का अद्भुत रूप देखा... राजा मोहित हो गया। मदनरेखा के शरीरसौन्दर्य ने मणिरथ के मन को और नयन को विकारी बना दिए | मणिरथ मदनरेखा के प्रति अनुरागी बन गया। बस, अब वह प्रिय पात्र को पाने के लिए तरसने लगा। प्रिय विषय की प्राप्ति की अभिलाषा होती ही है! तीव्र अभिलाषा में मनुष्य विवेकशून्य हो जाता है। मणिरथ क्या नहीं जानता था कि 'यह स्त्री मेरे लघुभ्राता की पत्नी है। मेरे भाई का उस पर अधिकार है। मेरे भाई के सुख का वह साधन है, मुझे उसके प्रति मोहित नहीं होना चाहिए। उसको पाने का विचार नहीं करना चाहिए।'
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