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प्रवचन-१३
___ १७३ शत्रुता बहुत बड़ा पाप है, बहुत बड़ा अपराध है। जैसे जीवों के प्रति ईर्ष्या करना, जीवों के प्रति निर्दय बनना, घृणा-तिरस्कार करना भी गंभीर अपराध है। इन अपराधों की सजा बहुत बड़ी है। भयंकर सजा होती है।
सभा में से : ऐसे अपराध तो हमारे लोगों के जीवन में बहुत हो जाते हैं! इन अपराधों से बचना मुश्किल लगता है। __ महाराजश्री : अपराधों से बचना मुश्किल लगता है तो फिर सजा से बचना मुश्किल ही नहीं वरन असंभव समझो। जब तक हृदय की अशुद्धियाँ आप देखोगे नहीं, उन अशुद्धियों को दूर करने का विचार ही नहीं आएगा, दूर करने का पुरुषार्थ तो होगा ही नहीं। और अशुद्ध एवं अशक्त चित्त से आप कितनी भी धर्मक्रियाएँ करो, वह धर्म नहीं कहलाएगा। पापविचार प्यारे लगते हैं न?
यदि आप दूसरे जीवों के हित का विचार नहीं करते हैं, अहित करने का सोचते हो, यदि आप गुणवान पुरुषों के गुणों की प्रशंसा नहीं करते हैं; परन्तु गुणवानों के भी दोष देखते हो और निन्दा करते हो, यदि आप में दुःखी जीवों के प्रति दया-करुणा नहीं है, परन्तु निर्दयता और कठोरता है, यदि आप पापी जीवों के प्रति तीव्र घृणा करते हैं, मध्यस्थ नहीं रहते, तो आपका कोई भी अनुष्ठान, आपकी कोई भी क्रिया, धर्म नहीं बन सकती। यदि आप सही अर्थ में धर्म-आराधना कर मानव-जीवन का साफल्य पाना चाहते हो, आत्मविकास करना चाहते हो, तो सर्वप्रथम काम चित्तशुद्धि का करो। अशुद्ध विचार काँटों की तरह पीड़ा देंगे तब उन विचारों को दूर करोगे ही। अभी तो अशुद्ध पापविचार फूल जैसे लगते हैं। __जड़-भौतिक पदार्थों का राग ही तो जीवों के प्रति द्वेष करवाता है! दूसरे जीवों के सुख का, हित का, कल्याण का विचार क्यों नहीं आता है? क्यों अपने ही सुख का, अपने ही हित का विचार करते हो? राग हैं... प्रीति है जड़ पदार्थों के प्रति! जीवों के प्रति शत्रुता का मूलभूत कारण यह है । जड़ का राग जीवद्वेष पैदा करता है। राग में से द्वेष पैदा होता है :
आपको पैसे प्यारे लगते हैं न? मानों कि आपने अपने भाई को हजार रूपये दिए हैं। भाई ने रूपये आपको वापस लौटाने का कहा है। यदि समय पर उसने पैसा नहीं लौटाया, तो आपको क्या होगा? भाई के प्रति गुस्सा
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