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प्रवचन-९
१२३ सभा में से : विद्यार्थी में अध्ययन की अभिरुचि भी अध्यापक पैदा कर सकता है न?
महाराजश्री : मैं भी वही कार्य कर रहा हूँ! धर्ममय जीवन बनाने की अभिरुचि प्रकट करने के लिए तो प्रतिदिन प्रवचन दे रहा हूँ। प्रवचन से आपका 'मूड' बनाया जाता है। 'मूड' बन गया कि काम बन गया! परन्तु आपका 'मूड' जल्दी 'ऑफ' हो जाता है! 'मूड' बना रहना चाहिए। वैसा परिवार चाहिए, वैसे मित्र चाहिए कि जो आपका जीवन-परिवर्तन का 'मूड' 'ऑफ' नहीं कर दें।
संघर्ष के बिना सफलता कहाँ? शान्ति के बिना सिद्धि कहाँ?
एक बात समझ लो कि, आप ज्यों जीवनपरिवर्तन का श्रीगणेश करोगे, त्यों विघ्न तो हजार आएँगे। दुनिया की दृष्टि में आपने ज्यों थोड़ा-सा भी मार्ग बदला त्यों दुनियाँवालों की दृष्टि बदल जाएगी। मानो कि आप सरकारी अफसर हैं, आज दिन तक आप रिश्वत लेते आए हो, कल ऑफिस में जाकर रिश्वत लेने से इनकार करोगे तो आपके आसपास के लोग जो रिश्वतखोर हैं, आपको गलत दृष्टि से देखेंगे। आपका मजाक भी उड़ायेंगे। आपको रिश्वत लेने के लिए समझाने का प्रयत्न करेंगे। आप पर दबाव डालने का प्रयत्न करेंगे। जिन-जिनको उस रिश्वत में से हिस्सा मिलता होगा, वे सब आपको घेर लेंगे। उस समय आपकी कसौटी होगी। घर पहुँचने पर दूसरी कसौटी होगी। यदि घरवाले मौज-मजा का जीवन जीना चाहते होंगे, 'लक्ज्यूरियस' विलासी जीवन जीना पसंद करते होंगे तो आपको रिश्वत के पैसे लेने को मजबूर करेंगे! हाँ, ऐसे विघ्न आयेंगे ही। आपके पास दृढ़ मनोबल होगा तो ही आप अपनी बात पर अडिग रह सकोगे। दूसरों को अपनी बात समझाने की क्षमता भी आप में चाहिए। ___ संघर्ष के बिना शान्ति नहीं! शक्ति के बिना सिद्धि नहीं! संघर्ष में शक्तिमान ही सिद्धि प्राप्त करता है। अशक्त, कमजोर मनुष्य करारी हार खाता है। जीवन-परिवर्तन एक संघर्ष है। प्रचुर शक्ति से संघर्ष करते रहो।
आज, बस इतना ही।
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