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प्रवचन- ११
सुखों में भी कैसी घोर आसक्ति है ? प्रभो, मुझे अनासक्त बनाइए।
चाहिए न आपको अनासक्ति ? संसार के सुखों से मन विरक्त बन जाय, ऐसा चाहते हो न? तो अवस्थाचिन्तन के माध्यम से, परमात्मा से विरक्ति की प्रार्थना करो ।
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श्रमण-अवस्था :
तीसरी अवस्था है श्रमण - अवस्था । राजमहलों को छोड़कर अपार वैभवों का त्याग कर जब तीर्थंकर की आत्मा श्रमणजीवन को स्वीकार कर लेती है, दुनिया आश्चर्य से देखती रह जाती है । उनको जो कार्य करना है सर्व जीवों को परमसुख का मार्ग बताने का, उस कार्य के लिए सर्वज्ञता और वीतरागता अनिवार्य रूप से चाहिए। जब तक आत्मा सर्वज्ञ - केवलज्ञानी नहीं बने, वीतराग नहीं बने, विश्व के जीवों को पथ-प्रदर्शन नहीं किया जा सकता है । सर्वज्ञता और वीतरागता आत्मा में प्रकट करने के लिए प्रबल साधना करनी पड़ती है। साधना करने का जीवन है श्रमण- जीवन । ज्ञान, ध्यान, तपस्या, आत्मदमन का जीवन है श्रमण जीवन । सर्वज्ञता और वीतरागता में बाधक कर्मों का नाशसर्वनाश करने की साधना वे करते हैं। भगवान महावीर स्वामी ने साड़े बारह वर्ष तक ऐसी घोर और उग्र साधना की थी। साधना के परिणामस्वरूप उन्होंने वीतरागता और सर्वज्ञता पाई थी । परमात्मा के सामने श्रमण-जीवन का चिन्तन इस प्रकार किया करें : 'हे भगवन्त, आपने राजवैभवों का त्याग कर, पाँच इन्द्रियों के अनेक प्रिय विषयों का त्याग कर कठोर संयमजीवन ग्रहण किया, वर्षों तक घोर - उग्र तपश्चर्या की, अप्रमत्त भाव से ध्यान किया । अनेक उपसर्ग और परिसह समताभाव से सहन कर कर्मों का नाश किया। कैसी वीरतापूर्ण आपकी साधना ! कैसा उग्र आपका आत्मदमन! हे परमात्मा, मुझमें भी ऐसी वीरता पैदा करो। मैं भी कठोर धर्मसाधना करके कर्मों का नाश करूँ और सर्वज्ञ बनूँ, वीतराग बनूँ, प्रभो ! मुझ पर ऐसी कृपा करो । '
बनना है न सर्वज्ञ और वीतराग ? अज्ञानता और रागदशा से अब ऊब गये हो न? तो अवस्था चिन्तन में परमात्मा से यह याचना करो, प्रतिदिन याचना करो। अंतःकरण से प्रार्थना करो ।
कैवल्य-अवस्था :
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छद्मस्थ-अवस्था का चिन्तन इस प्रकार किया जाता है। जन्म, राज्य और श्रमण-अवस्था का चिन्तन शुरू करना । परमात्मपूजन में यह चिन्तन करने से