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प्रवचन- ११
स्मरण होना दूसरी बात है । स्मरण में दर्शन की तड़पन होती है। मिलन की लगन होती है।
मूर्तिपूजा कौन समझेगा ?
जब सदेह परमात्मा का विरह है अपन को, यहाँ उनके दर्शन संभव नहीं है तब उनकी आकृति के दर्शन करके कुछ तृप्ति पा लेती है आत्मा । प्रेमतत्त्व को समझनेवाला ही मूर्तिपूजा का महत्त्व समझ सकता है । प्रेमतत्त्व को जो नहीं समझता है, मूर्तिपूजा का महत्त्व नहीं समझ सकता है। परमात्मप्रेमी परमात्मा का त्रिकाल - दर्शन नहीं करे तो उसके मन को चैन नहीं पड़ता, इसलिए त्रिकाल दर्शन की विधि बताई गई है। विधि बताई गई है इसलिए त्रिकाल - दर्शन नहीं करने हैं! आपको परमात्मा के मंदिर में परमात्मप्रेम खींचकर ले जाए! आप परमात्मा की मूर्ति देखकर गद्गद् हो जाएँ! आँखें आँसुओं से भर जाएँ। अरे! इतना मज़ा आ जाय कि शब्दों में उसका वर्णन ही नहीं किया जा सकता ।
जाते हो न दर्शन करने मन्दिर में? दर्शन किस प्रकार करते हो? परमात्मा की दृष्टि में दृष्टि मिलाकर खड़े रहते हो न ?
सभा में से : अशक्य है महाराज साहब, परमात्मा के इस प्रकार के दर्शन तो कोई ऐसे मन्दिर में हो सकते हैं कि जहाँ लोग बहुत कम जाते हों । यहाँ तो भक्त लोग भगवान को घेर लेते हैं, दर्शनार्थी को भगवान के पूरे दर्शन ही नहीं हो पाते !
सुखी सद्गृहस्थों को चाहिए कि वे गृहमन्दिर बनाएँ :
महाराजश्री : सच बात कहते हैं आप | स्वार्थी लोगों ने भगवान को घेर रखा है! स्वार्थ में विवेक नहीं टिकता । पूजा करनेवालों को यह होश ही नहीं रहता कि उनको किस प्रकार मूल गभारे में खड़ा रहना चाहिए । 'हम अकेले ही मन्दिर में नहीं हैं, दूसरे दर्शनार्थी भी हैं...' यह विचार आता ही नहीं है इन भक्तों को। इसलिए आप लोग यदि अच्छी तरह दर्शन करना चाहते हों तो अपने घर में ही एक कमरे में एक मंदिर बनाओ! यदि आप लोग बंगला बना सकते हो और बंगले में बेडरूम, ड्रोइंगरूम, किचन, बाथरूम सब बना सकते हो तो 'गॉडरूम' नहीं बना सकते? हाँ, जो व्यक्ति एक-दो कमरे में ही जीवन व्यतीत करता है, वह गृहमन्दिर नहीं बना सकता है। ऐसे साधारण और मध्यम स्थिति के लोगों के लिए ये संघमन्दिर बनाए जाते हैं । सुखी और
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