________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन-१०
१२७ पेथड़शाह पर कलंक आता है :
एक बार महामंत्री निष्कारण ही एक आफत में फँस गए। उनके पास मालवनरेश का दिया हुआ सवा लाख रूपये का वस्त्र था | महामंत्री उस वस्त्र को परमात्मपूजन हेतु पहनते थे। उस वस्त्र में ऐसा प्रभाव उत्पन्न हो गया था कि यदि किसी को बुखार आता हो, इस वस्त्र को ओढ़ ले तो बुखार उतर जाय | महामंत्री की धर्मपत्नी इस प्रभाव को भलीभाँति जानती थी। महामंत्री के ब्रह्मचर्यव्रत का वह प्रभाव था।
राजपरिवार के साथ महामंत्री के परिवार का संबंध होना स्वाभाविक था । मालवनरेश की दो रानियां थीं-एक थी लीलावती और दूसरी थी कदंबा । राजा को लीलावती की ओर ज्यादा स्नेह था। कदंबा इससे लीलावती की ओर ईर्ष्या से जलती थी। मनुष्य का कैसा स्वभाव है? लीलावती को कदंबा के प्रति कोई दुर्भाव नहीं था, कदंबा लीलावती के प्रति जलती थी। 'मुझे कम और लीलावती को ज्यादा सुख क्यों मिले? हाँ, यदि लीलावती को भी कम सुख मिलता, जितना कदंबा को मिलता था उतना ही, तो कदंबा को लीलावती की ईर्ष्या नहीं होती। परन्तु इसी तत्त्व ने महासती सीता के हरेभरे जीवन में आग सुलगाई थी न? श्री रामचन्द्रजी का सीताजी के प्रति अत्यंत स्नेह था, दूसरी रानियों से सहा नहीं गया, उन तीन रानियों ने मिलकर षड्यंत्र रचाया और सरल सीताजी उस षड्यंत्र में फँस गई उन पर कलंक आया। श्री राम ने सीता का जंगल में त्याग करवा दिया । खैर, सीता की भवितव्यता ही ऐसी थी, ऐसा मान लें, परन्तु उन तीनों रानियों को सीता के जाने से, ज्यादा सुख मिला था क्या? नहीं, यह तो मनुष्य की भ्रमणा है कि दूसरे को दुःखी करने से मुझे ज्यादा सुख मिलेगा।' बात इससे उल्टी है, दूसरों का सुख छीनने से तुम्हारा रहा सहा सुख भी चला जाएगा! परन्तु ईर्ष्या से जलनेवालों को यह सत्य कैसे समझाया जाए? वे लोग वह समझने के लिए तैयार ही नहीं होते। मालवनरेश की रानी कदंबा वैसी थी। 'लीलावती के प्रति राजा को अभाव हो जाए तो मेरे प्रति प्रेम बढ़ जाए, अन्यथा इस भव में राजा का प्रेम मुझे मिलनेवाला नहीं है! प्रेम बिना जिन्दगी में और क्या चाहिए? कदंबा की ऐसी विचारधारा होगी। कदंबा यह भी जानती होगी कि जब तक राजा लीलावती का कोई बड़ा दोष नहीं देखेगा तब तक उसका राग कम नहीं होगा। दोष-दर्शन से ही राग मरता है।
जब तक आपको इस संसार में दोष-दर्शन नहीं होगा तब तक संसार का मोह दूर नहीं होगा! इसलिए ज्ञानी पुरुष संसार की निन्दा करते हैं, संसार के
For Private And Personal Use Only