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प्रवचन- १०
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होगा? राजा ने देशनिकाला दे दिया है न? वह कहाँ जाएगी?' महामंत्री पथमिणी से इसी प्रश्न की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने कहा : 'तुम ही बताओ, उसको बचाने के लिए हम क्या कर सकते हैं? क्या करना चाहिए?' पथमिणी ने कहा : 'मैं क्या बताऊँ आपको? आप ही ऐसा उपाय सोचें कि वह रानी जंगली पशुओं की शिकार नहीं बन जाये। मुझे उसकी बहुत दया आती है। आप बचा सकते हैं उस पवित्र अबला को । कितनी छोटी उम्र है उसकी । '
पथमिणी की आँखें आँसुओं से भर गईं। महामंत्री के मन में तो रानी की सुरक्ष की योजना बनी हुई थी ही, परन्तु पथमिणी की पूर्णसम्मति उस योजना में आवश्यक थी। क्योंकि घटना बहुत ही पेचीदा थी। महामंत्री ने कहा : 'देखो देवी, उस रानी को तुम ही सुरक्षित रख सकती हो। गुप्त ढंग से उसको तुम्हारी हवेली के भूमिगृह में तुम रख लो... जब कलंक दूर होगा तब राजा के वहाँ चली जाएगी। कहो, है तुम्हारी तैयारी ?' महामंत्री ने पथमिणी के सामने देखा । जिस रानी के साथ प्रेम होने का आरोप महामंत्री पर है, उस रानी को अपनी हवेली में आश्रय देने की बात कितना बड़ा साहस है ? पथमिणी ने भी निःसंकोच अपनी सम्मति प्रदर्शित कर दी, यह उसका अपने पति पर कितना और कैसा अविचल विश्वास है ! 'मेरे पति नैष्ठिक ब्रह्मचारी हैं! उनके मन में भी विषयविकार नहीं है...' ऐसा निःशंक विश्वास है पथमिणी के हृदय में।
आज तो पति ने पत्नी का विश्वास गवाँ दिया है :
पेथड़शाह ने ऐसा विश्वास संपादन किया होगा न! ऐसा विश्वास आप लोगों ने पत्नी का संपादन किया है क्या ? है न आप पर अपनी पत्नी का विश्वास? ‘मेरे सिवाय सारी दुनिया की महिलाएँ मेरे पति के मन में माता और बहन के समान हैं। किसी भी दूसरी स्त्री के सामने विकारयुक्त नहीं बन सकते...।' ऐसा विश्वास आपके प्रति होगा न?
सभा में से : तब तो हम लोग स्वर्ग का सुख पा लें यहाँ ! ऐसे पुण्य कहाँ हैं हमारे ?
महाराजश्री : पुण्य तो हैं परन्तु आपके ऐसे लक्षण नहीं हैं! कहिए, आप अपनी पत्नी के प्रति पूर्ण वफादार रहे हो? परस्त्री को राग से स्पर्श भी नहीं किया है न? यदि इस विलासी युग में आपने स्वपत्नी की वफादारी निभाई है तो मेरे शतशत धन्यवाद हैं आपको । परस्त्री का रूप भी नहीं देखने का ।
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