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प्रवचन-१०
___१२९ ने कहा : 'यह खीर तेरे मास्टरजी के लिए ले जा | तो मैं इस मिट्टी के बर्तन में भरकर ले आया।'
जटाशंकर तो सुनकर इतना गुस्से में आ गया कि उसने कुंडे को जमीन पर दे मारा | कुंडा फूट गया । खीर जमीन पर फैल गई। जटाशंकर गुस्से में जोर से चिल्लाया 'नालायक, मुझे अपवित्र कर दिया!' लड़का जोर-जोर से रोने लगा। जटाशंकर ने कहा : 'अब क्यों रोता है?' लड़के ने कहा : 'यह कुंडा फूट गया। मेरी माँ मुझे मारेगी' जटाशंकर गुस्से में था, उसने कहा : 'क्या था इस कुंडे में। मिट्टी का तो था। कह देना तेरी माँ को कि 'मास्टरजी ने कुंडा फोड़ दिया ।' लड़के ने कहा : 'मेरी माँ हमेशा मेरे छोटे भैया को इस कुंडे में टट्टी कराती थी...' इतना कहकर लड़का तो भाग गया। जटाशंकर की आँखें चौड़ी हो गईं! संसार में दोषदर्शन करो :
पहले तो खीर देखते ही पीने लगा जटाशंकर! क्योंकि उसने खीर में गुण देखा, परन्तु लड़के ने बताया कि 'इस खीर में कुत्ते ने मुँह डाला है' तो खीर में दोष दिखाई दिया, राग उतर गया, फेंक दिया। समझे न? संसारवास का भी आप इस प्रकार त्याग कर सकते हो। हो जाना चाहिए दोष का दर्शन! भर्तृहरी को क्या हुआ था? संसार में दोष दिखाई दिया, 'विश्वासपात्र पत्नी ने विश्वासघात किया? पत्नी संसार का एक महत्त्वपूर्ण पात्र है, उसने धोखा दे दिया, तो फिर दूसरे किस मनुष्य पर विश्वास किया जाय? त्याग दिया संसार!
आप लोगों को संसार में दोष दिखता ही नहीं क्या? गुण ही गुण दिखते हैं क्या? इतनी प्रचंड मार खाते हो तो भी...।
सभा में से : संसार में मार तो बहुत खाते हैं, परन्तु वह 'मधुबिन्दु' वाला सुख मिलता है तब तो वह दुःख भूल जाते हैं। __ महाराजश्री : दुःख २३ घन्टे का, सुख एक घन्टे का, तो भी आप ऊब नहीं जाते। कमाल हैं आप लोग! क्षणिक वैषयिक सुख-अल्प क्षणों का भोगसुख पाने के लिए आपने अपने इर्दगिर्द कैसा जाल गूंथा है? आप देखो तो सही, उस जाल में आप कैसे फँस गए हो? क्या होगा परलोक में? वैषयिक सुख कैसे मिले हैं? कितने गन्दे, कितने वीभत्स, कितने जुगुप्सनीय? गटर की गन्दगी में मौजमजा? मनुष्यगति और तिर्यंचगति के सुख गटर की गंदगी जैसे
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