________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन-१०
१२४ • तुम्हारे जीवन को बारीकी से देखो-जाँचौ! भय के भूत तुम्हें डराते हैं न? चौतरफ द्वेष की ज्वाला धधक रही है न? दिल में
में खेद और अवसाद की गंदगी जमा हो रही है न? .जरा समझो तो सही, यदि संसार दुःखपूर्ण व यातनाभरा नहीं होता तो हम संसार छोड़ते ही क्यों? संसार के सुख खतरनाक हैं। अनंत दोष भरे हैं इस संसार में! कानों सुनी या आँखों देखी बात पर भी जल्दबाजी में कोई निर्णय मत करो। उस पर संजीदगी से सोचो। पूरी जाँचपड़ताल करो। जो निर्णय करो वह भी कठोरता या निर्दयता से मत करो। अपने हृदय में धर्म है तो वह धर्म ही अपनी रक्षा करेगा। धर्म की शरण में निर्भय बने रहो। दुराचार-व्यभिचार के रास्ते पर चलकर क्यों खुद की और । दूसरों की जिन्दगी को बरबाद करते हो...? वापस लौटो उस गंदे रास्ते से!
•
प्रवचन : १०
महान श्रुतधर धर्मधुरन्धर पूज्य आचार्यश्री हरिभद्रसूरिजी 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में धर्मतत्त्व का स्वरूप समझाते हुए फरमाते हैं :
वचनाद्यदनुष्ठानमविरुद्धाद्यथोदितम् ।
मैत्र्यादिभावसंयुक्तं तद्धर्म इति कीर्त्यते ।। जब मनुष्य का लक्ष्य निर्धारित हो जाय कि 'मुझे आत्मविशुद्धि करना है, तब वह आत्मविशुद्धि का मार्ग ढूँढ़ेगा ही। वह मार्ग है धर्म का। पहले तो आप यह सोचें कि अशुद्धियों के प्रति नफरत पैदा हुई है क्या? अशुद्धिजन्य सुखों के प्रति दुर्भाव पैदा हुआ है क्या? अशुद्धि में अकुलाहट का अनुभव हुआ है क्या? कपड़े अशुद्ध होते हैं तो क्या होता है? शरीर अशुद्ध होता है तो कैसा लगता है? शुद्ध करने का विचार आता है न? वस्त्र और शरीर को शुद्ध करने का उपाय खोजते हो न? अशुद्ध वस्त्र पसन्द नहीं आते, अशुद्ध शरीर पसन्द
For Private And Personal Use Only