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प्रवचन-४ 'अरे, सेठजी!' नारदजी ने आवाज लगाई।
'ओहो, प्रभु आप यहाँ पधार गये?' वह बिल्ला बोल उठा। कितने दयालु हैं आप! मेरे जैसे पापी का उद्धार करने की कैसी उच्चतम भावना।' नारदजी को थोड़ा-सा गुस्सा आ गया। उन्होंने कहा : 'सेठजी, अब ये सारी बातें छोड़ दो और चलो वैकुंठ में। यदि नहीं चलना है तो साफ-साफ मना कर दो।'
बिल्ले ने कहा : 'ओह प्रभु, मुझे तो वैकुंठ ही प्यारा है, मुझे इस संसार पर कोई राग नहीं रहा। मैं तो अभी आपके साथ चलने को तैयार हूँ...' ___ 'तो चलो, अब देर मत करो। कितनी मुश्किल से आपको ढूंढ़ निकाला है...।' ___ 'देवर्षि, मुझे यहाँ रहना कतई पसन्द नहीं। मैं यहाँ बिल्कुल अपरिग्रही जीवन जी रहा हूँ | मात्र लड़के के प्रति करुणा से यहाँ रह रहा हूँ | लड़के ने अनाज का धन्धा किया है, हजारों बोरे अनाज के भरे हैं। यहाँ चूहों का बड़ा उपद्रव है। मैं बैठा हूँ इधर तो चूहे नहीं आते हैं, अनाज का नुकसान नहीं हो रहा है। प्रभो, 'परोपकाराय सतां विभूतयः' के सिद्धांत का पालन कर रहा हूँ| है न सच बात?
देखी न सेठजी की दया! कैसे करुणावंत हैं बिल्ला सेठ? नारदजी सुनते ही रहे।
'तो क्या तुम नहीं चल रहे हो?' नारदजी ने जरा तीखे स्वर में पूछा। 'भगवंत, पंद्रह दिन में ही यह सारा अनाज चला जाएगा यहाँ से। लड़के ने माल बेच दिया है। पार्टी पंद्रह दिन में माल की 'डिलिवरी' ले लेगी...बस, प्रभो, फिर अपने चले चलेंगे आपके वैकुंठ में। ठीक है न?' बिल्ले ने कैसी तरकीब लड़ाई? आती है आपको ऐसी तरकीबें? आती हैं, इससे भी ज्यादा युक्तियाँ आती हैं, इसलिए तो धर्म से बचे हो? अभी तक मोक्ष में जाना नहीं पड़ा है। अन्यथा कभी के मोक्ष में पहुँच जाते! जाना ही नहीं है मोक्ष में। मात्र मोक्ष पाने की, आत्मा को विशुद्ध करने की बातें ही करते रहते हैं।
क्या कभी किसी सद्गुरु ने मुक्ति का उपदेश नहीं दिया? मोक्ष में चलने को नहीं कहा? किसी ने नहीं कहा हो तो मैं कहता हूँ : 'चलो मेरे साथ, अपने सब साथ-साथ मोक्षमार्ग पर चलते रहेंगे, तो एक न एक दिन पहुँच जायेंगे मोक्ष में| चलना है न? बोलिये अब मेरे सामने! चलाइए आप तरकीबें!
सभा में से : आपके सामने हमारी तरकीबें नहीं चलेंगी।
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