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BUDHIHIE
प्रवचन-८ • परमात्मपूजन करके आप
(१) दु:खों के भय से मुक्त हुए हो? (२) गुणवान पुरुषों के प्रति अद्वेषी बने हो? (३) पवित्र कार्यों में हमेशा प्रवृत्तिशील रहे हो? अन्य व्यक्तियों की प्रगति-उन्नति देखकर खुश होनेवाले लोग । बहुत कम होते हैं। ईर्ष्या से प्रेरित होकर व्यक्ति गलत व झूठी
आक्षेपबाजी में उतर जाता है। . भय एवं प्रलोभन पर संपूर्णतया अंकुश रखे बगैर साधु भी स्मशान या निर्जन में रात्रिनिवास नहीं कर सकते फिर
साध्वी तो कैसे कर सकती है? . 'जहा सुक्खं' जैन श्रमणपरंपरा का अनूठा एवं अनुपम सूत्र है। कितना सुंदर भाव है इस सूत्र का! समझाना था उतना समझा दिया...फिर भी आप नहीं मानते हो 'आपको सुख हो वैसा करो' अपनी बात नहीं माननेवाले के लिए भी सुख की ही कामना!
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प्रवचन : ८
याकिनीमहत्तरासुनु महान श्रुतधर आचार्यदेव श्री हरिभद्रसूरिजी 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में धर्म का स्वरूप समझा रहे हैं :
वचनाद्यदनुष्ठानमविरुद्धाद्यथोदितम् ।
मैत्र्यादिभावसंयुक्तं तद्धर्म इति कीर्त्यते ।। कोई भी क्रिया, कोई भी अनुष्ठान, सफलता की दृष्टि से किया जाता है। इच्छित परिणाम पाने की दृष्टि से किया जाता है। किसी भी कार्य को सफलता तभी प्राप्त होती है जब वह कार्य ठीक उसी प्रकार किया जाय कि जिस प्रकार होना चाहिए। कार्य करने की पद्धति वगैरह की हमें जानकारी नहीं होती है तो उस कार्य के विशेषज्ञ के पास चले जाते हैं और संपूर्ण जानकारी प्राप्त करते हैं। उस जानकारी के अनुसार कार्य करते हैं, तभी सफलता प्राप्त होती है।
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