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प्रवचन-९
११० में अकेली साध्वी को रात्रि के समय नहीं जाना चाहिए था, फिर भी गई, यह जिनाज्ञा का उल्लंघन किया। इसका परिणाम क्या आया? उसके मन में संसारसुख की वासना दृढ़ हो गई। उसने अपने मन में संकल्प कर लिया : 'मेरी तपश्चर्या के फलस्वरूप मुझे आनेवाले जन्म में पाँच पुरुषों का सुख मिले।' तपश्चर्या का सौदा कर लिया । महान कर्मनिर्जरा करनेवाली तपश्चर्या का नीलाम हो गया। संसार के तुच्छ असार भोगसुख देकर तपश्चर्या समाप्त हो गई।
क्यों हुआ ऐसा? पतन क्यों हुआ? प्रलोभन ने पछाड़ा उस साध्वी को। उस वेश्या के विलास का दर्शन साध्वी के लिए प्रबल प्रलोभन बन गया । भय और प्रलोभन पर विजय पाये बिना साधना में सिद्धि प्राप्त नहीं हो सकती। ज्ञानी पुरुषों ने मोक्षमार्ग की जो आराधना बताई है, उसके जो नीति-नियम बताए हैं, विधि-विधान बताए हैं, वह इस दृष्टिकोण से बताए हैं कि साधक भय और प्रलोभनों में फँसकर गिर न जाए। हमें गहराई में जाकर सोचना चाहिए! तो विधि के प्रति, मर्यादाओं के प्रति अरुचि नहीं होगी, तिरस्कार नहीं होगा। _इस प्रकार जिनाज्ञा को लक्ष्य में लेकर, ज्ञानी पुरुषों के बताए हुए मार्ग पर चलें और आत्मकल्याण की साधना करें, यही शुभ कामना।
आज, बस इतना ही।
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