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प्रवचन-६ विषय में संदेह था, जिस संदेह को वह स्वयं नहीं मिटा सके थे, भगवान महावीर ने संदेह भी बता दिया, संदेह का निराकरण भी कर दिया! इन्द्रभूति को कुछ भी बोलना नहीं पड़ा। उनके मन में जो तात्त्विक विरोध चल रहा था, भगवान महावीर ने उस विरोध को मिटा दिया, अविरोध स्थापित कर दिया, विवाद मिटा दिया, संवाद पैदा कर दिया! इन्द्रभूति को अनेकान्त दृष्टि दी, जो तत्त्वों का संवाद स्थापित करने की दिव्य दृष्टि है।
इन्द्रभूति को भगवान महावीर से अविरुद्ध वचन मिल गया, उसके मन के तत्त्वविषयक सब विरोध मिट गए! वही वचन अविरुद्ध है, जो जीवों के मन के विरोधों का उपशम कर दे। हालाँकि इसका दूसरा अर्थ भी है : जिस वचन में अव्याप्ति-अतिव्याप्ति-असंभव दोष नहीं हो! जीवन में धर्म को स्थान दो :
'अव्याप्ति' वगैरह दोषों का ज्ञान है? नहीं है न? कौन अध्ययन करे? यदि अध्ययन करने से पैसा मिलता हो तो? सब कुछ पैसे के लिए ही करने का! जीवन का लक्ष्य भौतिक सुख और भौतिक सुखों के लिए पैसा! फिर आत्मा का क्या होगा? परलोक में क्या होगा? मृत्यु के बाद पुनः जन्म कहाँ लेना है? कुछ सोचते हो या नहीं? जिस मनुष्य ने अपने जीवन में धर्म को स्थान नहीं दिया, उसका पुनर्जन्म कहाँ होगा? दुर्गति में न? तिर्यंचयोनि और नरकयोनि में न? वहाँ फिर पाँच इन्द्रिय के विषयसुख मिलेंगे न? शान्त चित्त से सोचो। जीवन में धर्म को स्थान दो, इसलिए धर्म को समझो। धर्म का स्वरूप समझो, इसलिए ज्ञानी गुरुजनों के चरणों में बैठकर कुछ अध्ययन करो। अव्याप्ति : अतिव्याप्ति : असंभव :
धर्मतत्त्व का स्वरूप-निर्णय करने के लिए सूक्ष्म बुद्धि से विचार करना चाहिए। किसी भी वस्तु का लक्षण इन अव्याप्ति आदि तीन दोषों से मुक्त होना चाहिए | दोषों का ज्ञान प्राप्त करना मुश्किल नहीं है, घबराओ मत! 'अव्याप्ति' उसे कहते हैं कि जो लक्षण जिस वस्तु का बनाया, उस वस्तु में वह लक्षण थोड़ा दिखता हो, थोड़ा नहीं दिखता हो! जैसे 'गाय सफेद होती है' ऐसा लक्षण बनाया, कुछ गायें सफेद होती हैं, कुछ काली भी! काली गाय में वह लक्षण नहीं रहा! इसलिए 'अव्याप्ति' दोष आया । 'अतिव्याप्ति' उसे कहते हैं कि जिस वस्तु का जो लक्षण बनाया, उस वस्तु में तो वह लक्षण रहेगा, परंतु दूसरी वस्तु में भी वह लक्षण चला जाय! जैसे 'जिसको सींग हो वह बैल! सींग बैलों के तो
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