________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
९३
प्रवचन-७ यह बहुत बड़ी बात है हमारे श्रमण संघ में। अपना शिष्य दूसरे धर्म की प्रशंसा करे, दूसरे धर्म को श्रेष्ठ कहे, यह कैसे सहन हो सके? आगबबूला हो जाए, यदि आज ऐसी घटना बन जाए तो!
सिद्धर्षि के गुरु महान ज्ञानी और स्थितप्रज्ञ जैसे थे। एक तीव्र बुद्धिमान शिष्य के मन में बौद्ध दर्शन के तर्क हलचल पैदा कर सकते हैं, यह बात वे अच्छी तरह जानते थे। तीव्र बुद्धिवालों को तर्क से और प्रेम से ही समझाया जा सकता है। गुस्सा करने से और तिरस्कार करने से तो ऐसे शिष्य विद्रोही मनवाले बन जाते हैं। मात्र पूर्वपक्ष सुनकर ही आवेश में आ जानेवाले विद्वान, श्रेष्ठ उत्तरपक्ष स्थापित नहीं कर सकते। सिद्धर्षि वास्तव में महान भाग्यशाली थे कि उनको ऐसे बहुमुखी प्रतिभावाले गुरु मिले थे। यदि ऐसे गुरु नहीं मिलते तो जैन परंपरा को सिद्धर्षि जैसे महान् विद्वान् साधुपुरुष नहीं मिलते। __गुरुदेव ने सिद्धर्षि की बातें सुनीं। फिर एक-एक बात लेकर अकाट्य तर्कों से उन बातों का सफाया कर दिया! सिद्धर्षि तो चकित रह गए! 'ओह! जैन-दर्शन के तर्क भी गजब के हैं, बौद्ध-दर्शन तो इसके आगे कुछ नहीं है!' उन्होंने अपने गुरुदेव से कहा : 'गुरुदेव, जैन-दर्शन श्रेष्ठ है। अब मैं बौद्ध धर्म स्वीकारना नहीं चाहता, परन्तु मुझे अपना यह निर्णय बौद्धाचार्य को बताने जाना पड़ेगा।' ___ गुरुदेव ने इनकार नहीं किया। उनको भय नहीं था शिष्य के चले जाने का! 'अब यह जाएगा और फिर बौद्ध-आचार्य ने तर्कजाल में फँसा दिया तो?' गुरुदेव निश्चिंत थे। उनको विश्वास था सिद्धर्षि पर कि 'यह मुझे सूचित किए बिना वहाँ नहीं रह जाएगा। वहाँ की बातों से प्रभावित होगा तो भी मुझे निवेदन करेगा ही और मेरे पास आने के बाद मैं उसको वापस सम्हाल लूंगा।' सिद्धर्षि आए बौद्धाचार्य के पास :
ऐसा ही हुआ। सिद्धर्षि बौद्धाचार्य के पास गए। उन्होंने बौद्धाचार्य को जैन धर्म की श्रेष्ठता को सिद्ध करनेवाले तर्क दिए । बौद्धाचार्य ने प्रति तर्क देकर बौद्ध धर्म की श्रेष्ठता सिद्ध कर दी। तर्कप्रिय सिद्धर्षि को वे तर्क पसन्द आ गए। पुनः वे अपने धर्माचार्य के पास गए। बौद्धाचार्य ने जो तर्क दिए थे वे उनको सुनाये। जैनाचार्य ने उन तर्कों का खंडन किया और जैनधर्म की श्रेष्ठता सिद्ध की! सिद्धर्षि को ये तर्क अकाट्य लगे! सिद्धर्षि की सूक्ष्म बुद्धि भी चंचल हो गई। इक्कीस बार वे इस प्रकार बौद्धाचार्य और जैनाचार्य के पास आए, गए।
For Private And Personal Use Only