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प्रवचन-६ से आत्मा पर लगे हुए राग-द्वेष, काम-क्रोध, मद-मान इत्यादि असंख्य रोगों को मिटानेवाला धर्म जिनाज्ञानुसार नहीं करना चाहिए क्या? जिनाज्ञा को ध्यान में लिए बिना जैसे-तैसे धर्मक्रियाएँ करने से राग-द्वेष आदि रोग मिट जायेंगे क्या? रोग मिटेंगे तो नहीं, परंतु ऐसी प्रतिक्रिया आ जाएगी कि बुरी तरह मारे जाओगे! जटाशंकर का झमेला :
जटाशंकर के पेट में दर्द हुआ। उसको मालूम था कि हिंग्वाष्टक चूर्ण लेने से दर्द मिट जाता है। पढ़ा होगा किसी किताब में, अथवा सुन लिया होगा किसी वैद्य से । गया बाजार में और १० तोले की हिंग्वाष्टक चूर्ण की शीशी ले आया, शीशी के ऊपर लेबल लगा हुआ था, उस पर लिखा था 'सुबह-शाम पाव तोला लेना।' जटाशंकर ने ‘पाव' का अर्थ किया ‘सवा पाँच तोला!' दो समय में पूरी शीशी खाली कर दी। रात में भयंकर जलन उठी, दर्द काफी बढ़ गया, तो दौड़ा दौड़ा गया वैद्यराज के पास। जटाशंकर की बात सुनकर वैद्यराज बहुत हँसे और कहा : जटाशंकर, दवाई इस प्रकार स्वयं अपनी कल्पना से नहीं ली जाती, जिस प्रकार हम कहें उस प्रकार लेनी चाहिए, पाव तोला लेने की जगह सवा पाँच तोला चूर्ण तूने खा लिया! अच्छा किया कि अभी तू मेरे पास आ गया।'
लिखा हुआ पढ़ना भी तो आना चाहिए। पढ़ना आता हो फिर भी सही रूप में समझना आवश्यक होता है। जटाशंकर ने लेबल पढ़ तो लिया, पर समझ नहीं सका, गलत समझा, इसलिए गलत को सही समझकर दस तोला हिंग्वाष्टक चूर्ण एक दिन में खा गया। कैसा 'रिएक्शन' आया? 'सेल्फ ड्राइविंग' न आता हो तो 'ड्राइवर' रख लोः
धर्म को, धर्मग्रन्थों को पढ़ते आना चाहिए और समझ में आना चाहिए। पढ़ने के लिए संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं का ज्ञान चाहिए, समझने के लिए धर्मग्रन्थों के ज्ञाता गुरुओं का सहवास चाहिए, बुद्धि सूक्ष्म चाहिए। अथवा ऐसे धर्ममय जीवन जीनेवाले त्यागी एवं शास्त्रज्ञ सद्गुरु के चरणों में ऐसा समर्पण चाहिए कि वे जिस ढंग से धर्मानुष्ठान करने को कहें, बिना शंका किए, बिना तर्क-वितर्क किए, कर लें। कार चलाना नहीं आता है, तो ड्राइवर जैसा ड्राइविंग कर के आपको ले जाय, आप चले जाएँ, कार में बैठे रहें! ड्राइविंग आता नहीं हो और करने जाओगे तो मारे जाओगे! इसीलिए या तो ड्राइविंग सीख लो,
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